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________________ जो उनकी जिंदगी में हैं, उनके सपनों में जारी रहती हैं। जो महल यहां नहीं बना पाए, वह सपनों में बनाते हैं। जो गड्डे यहां नहीं खोद पाए, वहा खोदते हैं। मगर कुछ-न-कुछ जारी रखते हैं। तुम्हारे सपने चाहे अलग- अलग हों, लेकिन बहुत गौर से देखोगे तो तुम दो तरह के सपने पाओगे या तो रज से भरे, या तम से भरे। और एक का सपना दूसरे की समझ में नहीं आएगा। मैंने सुना है, एक बिल्ली एक वृक्ष पर बैठी सुबह-सुबह-सर्दी के दिन और धूप ले रही थी। और नीचे एक कुत्ता भी बैठा था। कुत्ता झपकी खा रहा था-सुबह की धूप बिल्ली ने पूछा क्या कर रहे हो? तो उसने आख खोली, उसने कहा, एक बड़ा अदभुत सपना आया। कि बड़ी वर्षा हुई और वर्षा में पानी नहीं गिरा, हड्डियां गिरी। हड्डियां ही हड्डियां। कुत्ते का सपना कुत्ते का ही होगा न! बिल्ली ने कहा, हद्द हो गयी। कभी सुना नहीं। न शास्त्रों में लिखा है। शास्त्रों में तो ऐसा लिखा है कि कभी-कभी ऐसा होता है कि जब वर्षा होती है तो पानी नहीं गिरता, चूहे गिरते हैं। ये हड्डियां कभी सुनी नहींऔर न शास्त्रों में लिखी हैं। बिल्ली के सपनों में तो चूहे ही गिरते हैं। और बिल्ली के शास्त्रों में भी चूहे ही लिखे होंगे। कुत्ते के शास्त्रों में हड्डियां लिखी हैं। कुत्ता हंसने लगा, उसने कहा, छोड़ भी, मुझे समझाने चली है। मैं पढ़ा-लिखा कुत्ता हूं, मैंने भी शास्त्र पढ़े हैं। मगर कुत्तों ने कुत्तों के शास्त्र पढ़े हैं। हड्डियों का ही वर्णन है, चूहों का कहीं वर्णन आया ही नहीं। तुम हंसते हो, क्योंकि न तुम कुत्ता हो, न तुम बिल्ली हो, तुम आदमी हो, इसलिए तुम हंस रहे हो। क्योंकि तुम्हारे शास्त्रों में कुछ और ही लिखा है। तुम हंस रहे हो कि यह पागल कुत्ता और पागल बिल्ली! हमसे पूछो कि सपनों में क्या आता है! तुम्हारे सपने अलग हैं, मगर बहुत मौलिक रूप से अलग नहीं है। अगर तुम दो हिस्सों में तोड़ दो मनुष्यजाति को, तो रज और तम। या तो राजसी सपने हैं-जों कर्म तुम दिन में नहीं कर पाए उसको करने की आकांक्षा है, या जो सुस्ती और आलस्य तुम दिन में बिताना चाहते थे नहीं बिताए, उसके सपने हैं। मगर बस दो ही हैं। या तो बहिर्मुखी का सपना या अंतर्मुखी का सपना| या तो पुरुष का सपना या स्त्री का सपना। निष्क्रिय या सक्रिय। बस दो ही तरह के सपने हैं। और दो ही तरह के लोग हैं। और ये दो ही तरह के असंतुलन हैं और दो ही तरह की विक्षिप्तताएं हैं। यह सूत्र कहता है. जो व्यक्ति हृदय की ग्रंथि से मुक्त हो गया, टूट गयी जिसके हृदय की ग्रंथि और जिसका रज-तम धुल गया है। दोनों धुल गये हैं। न अब रज बचा, न तम बचा। न जो पुरुष रहा और न स्त्री। न जो सक्रिय और न निष्क्रिय। न जो बहिर्मुखी, न अंतर्मुखी। जो बीच में ठहर गया। जिसके जीवन में संयम का वह परम-बिंद आ गया। जो जरूरी है, करेगा। जब करेगा तो जरा भी ना-नुच नहीं है। जब जरूरी नहीं है, तो नहीं करेगा। गुरजिएफ ने अपने शिष्यों को कहा है कुछ सूत्र दिये हैं, उनमें एक सूत्र यह भी है कि जो गैरजरूरी हो, वह मत करना। ऑस्स्की गुरजिएफ से पूछने लगा कि जो गैरजरूरी है, वह हम करेंगे ही क्यों! यह सूत्र आप क्यों देते हैं? इसको इतना मूल्य क्यों देते हैं? गुरजिएफ ने कहा कि मैं लोगों को देखता
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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