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________________ बिखर गयी धीरज की पूंजी सुख -सपने नीलाम हो गये शीशा बिका, किंतु रतन के मंसूबे नाकाम हो गये ऊपर की इस चमक -दमक में किसके लिए दहूं निखरूं अब? हाट-बाट की भीड छट गयी मिला न कोई मेरा गाहक मैं अनचाहा खड़ा रह गया व्यर्थ गयी सब मेहनत नाहक बीत गयी सज-धज की बेला किसके लिए बनूं संवरूं अब? प्रात गया दोपहरी के संग आगे दिखती रीती संध्या कातर प्रेत खड़े आंसू के ज्योति हो गयी जैसे बंध्या चला-चली की इस बेला में किसके लिए रहूं ठहरूं अब? तुम्हें अगर दिखायी पड़ने लगे, यह जो तुम अब तक करते रहे हो व्यर्थ था, रेत से तेल निचोड़ रहे थे, झूठ को सच बनाने में लगे थे, सपनों को यथार्थ माना था, जिस दिन तुम्हें दिख जाएगा, उसी दिन हाथ ढीले हो जाएंगे। किसी और ने तुम्हें पकड़ा नहीं। संसार ने तुम्हें पकड़ा नहीं। तुमने ही संसार को पकड़ा है। तो जल्दी का अर्थ ही यह होता है कि अभी तुमने देखा नहीं, अभी दृष्टि पैदा नहीं हुई। अब एक आदमी जहर की प्याली लिए बैठा है, कहता है, हे प्रभु, कैसे इसको न पीयूं? कौन तुमको कहता है कि पीओ? पीना हो, पी लो, न पीना हो, न पीओ। मगर इस तरह की बातें तो न करो कि हे प्रभु, इसको कैसे न पीयूं? अगर जहर दिख गया है तो कैसे पीओगे, मैं पूछता हूं? और अगर जहर नहीं दिखा है, तो कैसे रुकोगे? अगर अमृत दिख रहा है तो कहते रहें लाख दूसरे लोग कि जहर है, इससे कुछ भी न होगा। तुम्हें दिखना चाहिए।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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