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________________ कर्मठ - दिवस में भी नींद-सा हो चैन तो जानना बुद्धत्व की किरण वहां पैदा हुई है जहां अपूर्व शांति का राज्य हो, जिसकी मौजूदगी में, जिसकी उपस्थिति में तुम भी शांत होने लगो, तुम्हारा भागा-भागा मन भी घर लौटने लगे, जिसके पास बैठकर तुम अपने भीतर एक खिंचाव अनुभव करो कि तुम अपने भीतर खींचे जा रहे हो, जो तुम्हें तुम्हारे भीतर पहुंचाने लगे सिर्फ मौजूदगी से सिर्फ उपस्थिति सें - यही सत्संग का अर्थ है - तो जानना बुद्धत्व घटित हुआ है। मगर, फिर मैं दोहरा दूं - ये इशारे हैं। इनको परिभाषाएं मत समझ लेना । सिमटकर आज बांहों में चलो आकाश तो आया उतरकर एक टुकड़ा चांदनी का पास तो आया ठहरते थे जहां पर आंसुओ के काफिले आकर अचानक उन किवाड़ों के किनारे हास तो आया अभी तक पतझरों से ही हुआ था उम्र का परिचय चलो वातायनों से फिर मलय-वातास तो आया जिसके पास तुम्हें ऐसा लगे कि खुल गया आकाश; जिसकी मौजूदगी दीवाल न बने, जिसकी मौजूदगी द्वार बने, जिसके पास से विराट और तुम्हारे बीच कुछ कानाफूसी होने लगे - कानाफूसी कह रहा हूं इसलिए कह रहा हूं कानाफूसी कि ये इशारे हैं जिसके पास कुछ झलकें, आहटें, पदचाप सुना पड़े.. .. धुंधले - धुंधले होंगे, साफ तो हो नहीं सकते क्योंकि तुम सोए हुए हो। सोए हुए आदमी के पास कोई नाच भी रहा हो, तो भी उसे पक्का तो पता नहीं चलेगा, नींद में कभी-कभी घूंघर बज जाएंगे, कभी पैरों की ताल मालूम पड़ जाएगी, कभी बजती ढोलक का कोई एक स्वर भीतर प्रविष्ट हो जाएगा, कभी करवट लेते वक्त थोड़ा गहरी नींद न होगी, हल्की नींद होगी तो कोई धुन भीतर प्रवेश कर जाएगी, बस ऐसा। तुम सोए हो। तो तुम बुद्धत्व को पूरा-पूरा आंख खोलकर तो नहीं देख सकते, सीधा-सीधा तो नहीं देख सकते, इसलिए कानाफूसी, पदचाप। वे भी नींद में और दूर से सुने गये। कभी तुमने देखा, सुबह - सुबह जागने के करीब हो, नींद टूट रही है, नहीं भी टूटी है; जागे भी, नहीं भी जागे; आधे आधे, बीच में हो; दूधवाला दस्तक देने लगा द्वार पर, राह चलने लगी, बच्चे स्कूल जाने की तैयारी करने लगे, किचन में पत्नी काम-धाम करने लगी, ऐसी टूटी-फूटी आवाजें सुनायी पड़ रही हैं, तुम जागे भी नहीं हो, तुम सोए भी नहीं हो। तुम इतने भी नहीं सोए हो कि कुछ सुनायी भी न पड़े, तुम इतने जागे भी नहीं हो कि साफ-साफ सुनायी पड़ जाए, ऐसी तुम्हारी दशा है। ऐसी दशा में बुद्धत्व की पहचान और परिभाषा पूरी-पूरी तुम्हारे हाथ में नहीं हो सकती| इसलिए कहता हूं इशारा| सिमटकर आज बाहों में चलो आकाश तो आया - उतरकर एक टुकड़ा चांदनी का पास तो आया और तुम पूरे बुद्धत्व की परिभाषा की फिकिर छोड़ो। तुम्हारे पास तो उतरकर चांदनी का एक
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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