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________________ और इधर मोजिज हैं, जरथुस्त्र हैं, बड़े विशिष्ट ! लाखों की भीड़ में होओगे तो भी तुम जरथुस्त्र को पहचान लोगे, वे अलग दिखाई पड़ेंगे। और फिर भी इन सबके भीतर एक ही घटना घटी है बुद्धत्व की। ये सब जाग गये हैं। ऐसा समझो कि तुम हजार तरह के लैंप बना लो, हजार तरह की लालटेन, कंदील बना लो - किसी में लाल रंग का काच लगा दो, किसी में पीले रंग का, किसी में हरे रंग का, किसी में बहुत मोटा काच लगा दो, किसी में बहुत पतला काच लगा दो किसी में सफेद, बहुत पारदर्शी और सब कंदील अलग- अलग ढांचे, ढंग, रूप-रंग के हों और तुम सबको जला दो, तो सभी के भीतर रोशनी एक होगी। और सभी के बाहर अलग-अलग रूप प्रगट होगा। नीले काच से नीला रंग झरता हुआ मालूम होगा और रोशनी नीली नहीं है। रोशनी तो एक ही है भीतर। लेकिन यह जो कांच की पर्त है, यह उसे नीला कर रही है। लाल से लाल रंग झरता मालूम होगा, पीले से पीला रंग झरता मालूम होगा। कोई कंदील सतरंगी हो सकती है। उससे पूरा इंद्रधनुष निकलता मालूम होगा। कृष्ण ऐसी ही कंदलि हैं। इंद्रधनुषी । सात रंग, मोरपंख | लाओत्सु ऐसी कंदील है, इतना पारदर्शी कि तुम्हें पता ही नहीं चलेगा कि कंदील है भी, कि काच है भी! इतना पारदर्शी ! कि जब तक तुम जाकर छू ही न लोगे, तुम्हें पता ही न चलेगा। बहुत पारदर्शी कांच को दूर से तुम देख नहीं सकते। टकरा जाओगे तभी पता चलेगा कि अरे, कोई है! अलग - अलग। बुद्ध हैं, महावीर हैं। महावीर बिना कांच के, सिर्फ रोशनी जल रही है, नग्न खड़े हैं। कोई रंग - रूप नहीं है। लेकिन रोशनी एक है। अब इस रोशनी के लिए क्या कहें? और यह रोशनी बाहर की नहीं है, यह रोशनी भीतर की, चैतन्य की, बुद्धत्व यानी चैतन्य जागरूकता की है। मैं तुमसे यह कह भी दूं तो कुछ हल तो न होगा। मैं तुमसे कहूं कि बुद्धत्व की एक ही पहचान है, परम जागरूकता-इससे क्या हल होगा? इससे कुछ तुम्हें सहायता तो न मिलेगी। परम जागरूकता ! तुम कहोगे, परम जागरूकता यानी क्या? प्रश्न वही - का - वही खड़ा रहेगा। तुम सोए हुए हो तुमने सिर्फ सोने का स्वाद जाना है, जागरण का तो तुम्हें कुछ भी पता नहीं। जागरण शब्द तुम्हें मालूम है, जागरण का कोई अनुभव नहीं । जब तक तुम जागो न, तब तक तुम जान न सकोगे। बुद्ध हुए बिना बुद्धत्व को जानने का कोई उपाय नहीं। अनुभव काम आएगा, परिभाषा काम न आएगी । लेकिन कुछ इशारे किये जा सकते हैं। इसको परिभाषा मत समझना, सिर्फ इशारे। इशारे और परिभाषा में फर्क समझ लेना । परिभाषा का अर्थ होता है, बात कह दी पूरी-पूरी। इशारे का अर्थ होता है, सिर्फ इंगित है। समझो तो बहुत है, न समझो तो कुछ भी नहीं है। परिभाषा का अर्थ है, यह लो परिभाषा, जो था जानने योग्य इसमें रख दिया है। इशारे का अर्थ है, ये सिर्फ इंगित है, इसे बहुत जोर से मत पकड़ लेना, नहीं तो चूक जाओगे। जैसे कोई आदमी चांद की तरफ उंगली से इशारा करे और तुम उसकी उंगली पकड़ लो कि चलो, यह चांद है। अंगुली चांद नहीं है । अंगुली चांद की परिभाषा नहीं है। अंगुली में कहां चांद की परिभाषा! अंगुली से चांद का क्या लेना-देना! अंगुली गोरी हो, काली हो, कुरूप हो, सुंदर हो, अपंग हो, क्या फर्क पड़ता है! की हो, जवान हो, स्त्री की हो, पुरुष की
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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