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________________ अंधेरे में अंधेरा रोशनी के काम आएगा न जाने दर्द को दिल अब कहां आराम आएगा जहां यह उम्र सिर रख दे कहां वह धाम आएगा अभी कुछ और बढ़ने दे पलक पर इस समुंदर को तभी तो मोतियों का और ज्यादा दाम आएगा घबड़ाना मत, अगर पहले अंधेरा भी मालूम पड़े तो देखते ही चले जाना। जैसे भरी दोपहरी कोई आता है घर, धूप से भरी आंखें, घर में प्रवेश करता है तो अंधेरा ही- अंधेरा मालूम होता है। आंखों की थोड़ी आदत तो बनने दो। बैठ जाता, सुस्ता लेता घड़ी भर। जैसे-जैसे सुस्ताता है, आंखें राजी होती जाती हैं। पहले घर में आकर अंधेरा मालूम हुआ था अब अंधेरा नहीं मालूम होता। अब बडी शीतल रोशनी मालूम होती है। पनपने दे जरा आदत निगाहों को अंधेरों की अंधेरे में अंधेरा रोशनी के काम आएगा एक बार देखने की आदत बन जाए अंधेरे को, तो अंधेरे को देखते-देखते ही रोशनी पैदा होनी शुरू हो जाती है। पहले तो बड़ा अंधकार मालूम होगा- विचार, विचार, विक्षिप्तता मालूम होगी। देखते रहना । पनपने दे जरा आदत निगाहों को अंधेरों की बस जरा आदत पनपने की बात है। और विचारों की इन धाराओं को देखकर बहुत बार ऐसा प्रश्न उठने लगेगा कि इसका कोई अंत होगा! यह कभी समाप्त होनेवाला है! कहते हैं बुद्धपुरुष कि समाप्त हो जाता है, लेकिन भरोसा न आएगा। बहुत बार नाव डगमगा जाएगी। बहुत बार चित्त कहेगा लौट चलो, पहले ही ठीक थे। यह किस झंझट में पड़े, समय क्यों गंवाते हो? जब भी ध्यान को बैठोगे, मन कहेगा, क्यों समय गंवाते हो, यह होनेवाला है ! हुआ होगा किसी को कम-से-कम तुम्हें तो नहीं होने वाला है। और जो तुम्हें नहीं हो सकता, वह किसी और को भी कैसे हुआ होगा झूठी हैं सब बातें। ये ध्यान और समाधि, ये कल्पना के जाल हैं। ऐसा मन समझाएगा। न जाने दर्द को दिल अब कहां आराम आएगा जहां यह उम्र सिर रख दे कहां वह धाम आएगा विचार और विचारों के तूफान और अंधड़ों में बहुत बार लगने लगेगा है कोई ऐसी जगह जहां सिर रखकर आराम आ जाए? जहां यह उम्र सिर रख दे कहां वह धाम आएगा नहीं, लगेगा कि नहीं ऐसा कोई धाम है, ऐसा कोई तीर्थ नहीं है जहां सिर रखने का उपाय हो। यह विक्षिप्तता शाश्वत, अनंत मालूम होती है। यह सदा से है, सदा रहेगी। पर फिर भी मैं तुमसे कहता हूं अगर थोड़ा धीरज रखा, तो वह धाम आ जाता है। और जितनी देर से आता है, उतना ही बहुमूल्य है
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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