SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठीक। ज्ञानी तो खूटी हो गया, भगवान चाहें अपना कपड़ा टाग लें, अंगरखा टाग दें, न चाहें न टागें। खूटी को कुछ प्रयोजन नहीं है, टंगे अंगरखा तो ठीक, न टंगे तो ठीक। खूटी-खूटी है, निमित्त मात्र। बहुत कुछ ज्ञानी से होगा| कभी होगा, कभी नहीं भी होगा। किसी ज्ञानी से होगा और किसी ज्ञानी से नहीं भी होगा। कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए तुम कोई व्याख्या बांधकर मत बैठ जाना। ज्ञानी हुए, जो बोले। ज्ञानी हुए, जो मौन रहे। ज्ञानी हुए, जिन्होंने गहरे कर्म के जगत में भाग लिया, हाथ बंटाया। ज्ञानी हुए, जो बैठ गये अपनी गुफाओं में और संसार को बिलकुल भूल ही गये। दोनों ही ठीक हैं। क्योंकि दोनों के भीतर जो मौलिक बात घट रही है वह एक ही है। वह है स्व-स्फुरणा। जो हो रहा है स्फुरणा से, हो रहा है; जो नहीं हो रहा, नहीं हो रहा। न तो ज्ञानी कुछ अपनी चेष्टा से करता है और न अपनी चेष्टा से रोकता है। ज्ञानी बीच से बिलकुल हट गया है। उसने दरवाजा परमात्मा को दे दिया है। किंचित् कृत्य न पश्यति। 'धीरपुरुष न संसार के प्रति दवेष करता है और न आत्मा को देखने की इच्छा करता है। हर्ष और शोक से मुक्त वह न मरा हुआ है और न जीवित ही है।' धीरो न द्वेष्टि संसारमात्मान न दिदृक्षति। हर्षामर्षविनिर्मुक्तो न मृतो न च जीवीति।। धीरो न वेष्टि संसार..... यह तो समझ में आता है कि ज्ञानी को संसार नहीं दिखता। और संसार के प्रति देखने की आकांक्षा भी नहीं है। न संसार के प्रति कोई दवेष है। जो है ही नहीं उसके प्रति दवेष कैसा! समझो। राह पर रस्सी पड़ी है और तुमने अंधेरे में सांप समझ लिया। तो तुम भागे, घबडाए। फिर कोई दीया ले आया और रस्सी दिखायी पड़ गयी कि रस्सी है, सांप नहीं, फिर भी क्या तुम घबडाओगे? फिर भी क्या तुम डरोगे? फिर भी क्या रस्सी के पास से निकलने में भयभीत होओगे त्र: फिर भी भागोगे? फिर भी क्या अपने बच्चों को जाकर कहोगे कि बचकर निकलना उस रास्ते से? वहां एक रस्सी पड़ी है जो सांप जैसी मालूम पड़ती है। क्या तुम अपने बच्चों को सावधान करोगे कि उस रास्ते से जाना मत, वहां एक झूठा सांप पड़ा है। अगर तुम ऐसी बातें कहो तो बच्चे भी हंसेंगे। वे कहेंगे अगर झूठा ही है, तो आप चौंका क्यों रहे हैं हमें? सावधान क्यों कर रहे हैं? आपने देख लिया कि झूठा है, तो बात खतम हो गयी।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy