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________________ दिनांक 31 जनवरी, 1977; श्री ओशो आश्रम, पूना । अष्टावक्र उवाच। न शांतं स्तौति निष्कामो न दुष्टमपि निंदति । समदुःखसुखस्तुन्त किंचित् कृत्यं न पश्यति ।। 25811 धीरो न द्वेष्टि संसारमात्मान न दिहु क्षति हर्षामर्षविनिर्मुक्तो न मृतो न व जीवति ।। 2591। निःस्नेहः पुत्रदारादौ निष्कामो विषयेषु च। निश्चिंत स्वशरीरेऽयि निराश: शोभते बध: 11 26011 तष्टि: सर्वत्र धीरस्थ यथायतितवर्तिनः । स्वच्छंद चरतो देशान्यत्रास्तमितशायिनः ।। 261।। पततूदेतु वा देहो नास्य चिंता महात्मनः। स्वभावभूमिविश्रांतिविस्मृताशेषसंसतेः ।। 26211 अकिंचनः कामचारो निद्वंद्वंश्छिन्नसंशयः । असक्तः सर्वभावेषु केवलो रमते बुधः ।। 26311 देख ख मत तू यह कि तेरे अध्यात्म का सारसूत्रः समत्व - ( प्रवचन - छठवां) कौन दायें कौन बायें तू चला चल बस, कि सब पर प्यार की करता हवाएं दूसरा कोई नहीं, विश्राम है दुश्मन डगर पर इसलिए जो गालियां भी दे उसे तू दे दुआएं बोल कड़वे भी उठा ले गीत मैले भी घुला ले
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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