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________________ को प्रेम करते हैं। आइसक्रीम से लेकर आत्मा तक हर चीज को प्रेम करते हैं। कि आइसक्रीम से मुझे बड़ा प्रेम है। तुम प्रेम शब्द को भी खराब किये दे रहे हो। आइसक्रीम तो खराब हो ही रही है, तुम प्रेम को भी खराब किये दे रहे हो। कुछ प्रेम का मूल्य है, कुछ शब्द का अर्थ होता । तुम क्या कह रहे हो? तो गुरजिएफ कहता था, यह जो तुम प्रेम शब्द का उपयोग करते हो, यांत्रिक है। जब-जब दिन में तुम प्रेम शब्द का उपयोग करो, एक चाटा कसकर अपने को मारो। इससे तुम्हें होश आयेगा। और इसके बड़े परिणाम होते हैं। यह प्रक्रिया उपयोगी है। इसके बड़े परिणाम होंगे। क्योंकि जब भी तुम प्रेम कहोगे, एक चांटा मारोगे। धीरे- धीरे प्रेम कहने के पहले ही तुम्हें खयाल में आ जायेगा कि अब निकला प्रेम, और पड़ा चांटा। और बदनामी हुई और भद्द हुई और लोग हंसे धीरे- धीरे तुम्हारी यंत्रवत्ता गिरने लगेगी और होश जगेगा। अष्टावक्र के मार्ग पर जो करना पड़ता है वह व्यर्थ है। जो हो जाता है! और जो हो जाता है उसको अष्टावक्र भी रोकेंगे कैसे? जो किया ही नहीं वह रुकेगा कैसे? जो किया है वही रुक सकता है। अष्टावक्र मीरा को नहीं रोक सकते प्रार्थना करने से, तुम्हें रोक सकते हैं। तुम कर रहे थे। इधर मैं अष्टावक्र पर बोल रहा हूं तो मेरे पास प्रश्न आ जाते हैं कि अष्टावक्र तो कहते हैं ध्यान इत्यादि करने से कुछ सार नहीं, तो फिर हम जो ध्यान कर रहे हैं उसको बंद कर दें? तुम कर रहे हो इसलिए खयाल उठता है कि बंद कर दे, जब अष्टावक्र कहते हैं बंद कर दो। लेकिन जिसे ध्यान हो रहा है वह कैसे बंद करेगा? जो तुमने शुरू किया, बंद कर सकते हो। जो तुमने शुरू नहीं किया, जो शुरू हुआ, उसे तुम कैसे बंद करोगे? जरा श्वास को तो बंद करके देखो तो पता चल जायेगा कि नहीं होती बंद। तुमने शुरू भी नहीं की है, शुरू हुई है। बंद भी होगी कभी, अपने से होगी। तुम बीच में कर्ता नहीं बन सकते। तो खयाल रखना, एक तो प्रार्थना है जो की जाती है। और एक प्रार्थना है, जो हो जाती है। जो हो जाये वही सच है। जो हो जाये वह परम सौभाग्य की है। और कहीं भी हो सकती है। मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे का सवाल नहीं है। कहीं भी हो सकती है, क्योंकि परमात्मा सब जगह है। जहां से भी उसकी झलक मिल जायेगी वहीं हृदय डावांडोल हो जायेगा। वहीं मस्ती छा जायेगी। वहीं आंखों में नशा आ जायेगा। वहीं तुम डोलने लगोगे। वहीं तुम झुक जाओगे। तुम जरा इस बात को खयाल में रखना। जरा सोचो, किसी गुलाब के फूल को देखकर अगर तुम झुक गये और वहीं घुटने टेके हो गई नमाज । काबा की तरफ मुंह कर रहे हो, मुर्दा पत्थर की तरफ? इधर जीवित परमात्मा फूल से पुकार रहा है। कि तुम शब्दों के जाल को दोहरा रहे हों - गायत्री मंत्र, नमोकार। यहां फूल में नमोकार जीवित है, गायत्री प्रगट हो रही है, तुम मुर्दा शब्दों के साथ खेल कर रहे हो। झुक जाओ यहां। डूब जाओ इस फूल में। और तुम जानोगे प्रार्थना का स्वाद । तुम्हारे कारण प्रार्थना भी खराब हो गई है। जिस प्रार्थना में तुम मौजूद हो, वह प्रार्थना नहीं ।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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