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________________ यही है कि मैं ठीक-ठीक से अपने को पहचान लूं। भावपूर्ण हूं मैं या भाव से मेरा कोई संबंध नहीं जुड़ता? तीसरा प्रश्न : कामना के मूल में नैसर्गिक काम है, ऐसा कहा जाता है। क्या निसर्ग के अनुकूल बहना जागरण में सहयोगी नहीं है? कृपा करके समझायें। निसर्ग और निसर्ग का भेद समझो। वृक्ष हैं, पशु-पक्षी हैं, निसर्ग में हैं लेकिन मूर्छित हैं। बुद्ध हैं, कृष्ण हैं, अष्टावक्र हैं, मीरा-कबीर हैं, वे भी निसर्ग में हैं लेकिन अमूर्च्छित हैं जागे हुए हैं। पक्षी जो गीत गुनगुना रहे हैं, वह बिलकुल सोया-सोया है। उसका उन्हें कुछ भी पता नहीं। मीरा जो नाची है, जागकर नाची है। फूल खिल रहे वृक्षों में, वे मूर्छित हैं। बुद्ध में जो कमल खिला है वह में खिला है। तो एक तो निसर्ग है आदमी से नीचे। और एक निसर्ग है आदमी से ऊपर। दोनों एक ही निसर्ग हैं लेकिन एक बात का फर्क है-मूर्छा- अमूर्छा, बेहोशी-होश। और आदमी दोनों के बीच में है। एक तरफ पशु-पक्षियों का संसार है, पौधों -पत्थरों का, पहाडों का, चांद-तारों का, वहां भी बड़ी शांति है। निसर्ग है, प्रकृति है। जैसा होना चाहिए वैसा ही हो रहा है। अन्यथा कुछ हो ही नहीं सकता। अन्यथा करने की स्वतंत्रता भी नहीं है। अगर कोई पक्षी प्रकृति के प्रतिकूल भी जाना चाहें तो जा नहीं सकते, क्योंकि प्रतिकूल जाने के लिए बोध चाहिए। इसलिए यह कहना कि प्रकृति के अनुकूल हैं भी बिलकुल ठीक नहीं है। अनुकूल हैं मजबूरी में क्योंकि प्रतिकूल हो नहीं सकते कोई उपाय ही नहीं है। उन्हें याद भी नहीं है, पता भी नहीं है, होश भी नहीं है। जो हो रहा है, हो रहा है। जैसे एक आदमी को हम स्ट्रेचर पर रखकर ले आयें-क्लोरोफाम दिया हुआ आदमी बेहोश पड़ा है-उसको एक बगीचे में से घुमा दें। जब वह इस बगीचे में से घूमेगा तो फूलों की गंध भी उसके नासापुटों को छुएगी। सूरज की किरणें भी उसके चेहरे पर खेलेंगी। हवाओं के शीतल झोंके भी उसको स्पर्श करेंगे। शायद कुछ लाभ भी होगा-अचेतन जो भी लाभ हो सकता है प्रकृति के पास होने का। शायद जब होश में आयेगा तो कहेगा कि बड़ा सुंदर सपना देखा। बड़ा अच्छा लग रहा था। पता नहीं क्या था। कुछ साफ-साफ नहीं है, धुंधला- धुंधला है। लेकिन फिर इसी आदमी को हम होश से भरकर इस बगीचे में लायें, तब बगीचा वही है, आदमी वही है। जरा-सा फर्क पड़ा है। अब होश में है, तब बेहोश था। अब यही फूल, यही वृक्ष, यही सूरज की किरणें एक अपूर्व आनंद को जन्म देंगी।
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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