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________________ खराब हो गया है? सदा सिर नीचे होता था, पैर ऊपर होते थे, आज पैर नीचे और सिर ऊपर? उत्सुकतावश मछली पानी के ऊपर आई। और जब उसने देखा तो वह बड़ी मुश्किल में पड़ गई। तबसे मछलियों में खबर है कि आदमियों का कुछ भरोसा नहीं। इनके स्वभाव के संबंध में कुछ निश्चित नहीं किया जा सकता। होते कुछ दिखाते कुछ । असलियत कुछ खबर कुछ फैलाते। हमने अभी जो भी जगत देखा है वह हमने आदमी के दृष्टिकोण से देखा है। आदमी का दृष्टिकोण मछलियों जैसा बंधा दृष्टिकोण है। अभी हमने परमात्मा को सीधा-सीधा नहीं देखा, प्रतिफलन देखा है। प्रतिफलन की खोज ही विज्ञान है। इसलिए विज्ञान में कारण पहले, कार्य पीछे । और धर्म प्रतिफलन की खोज नहीं, सत्य की खोज है। वहां कार्य पहले, कारण पीछे। पानी लग गई आगी! यह उलटबांसी का अर्थ है। उलटबांसी का अर्थ ही यह होता है, कुछ बात जैसी तुम्हें दिखाई पड़ती है इससे उल्टी है। तुम कहते हो, तर्कयुक्त कहते हो कि पहले अपने को जान लूं फिर परमात्मा को जानने जाऊं मैं तुमसे कहता हूं तुम परमात्मा को ही जानकर स्वयं को जान पाओगे तुम कहते हो, लक्ष्य मिल जाये तो स्रोत मिल जायेगा । मैं तुमसे कहता हूं स्रोत मिल जाये तो लक्ष्य मिल जाये तुम तो परमात्मा को भी खोजने जाते हो तो बाहर जाते हो। आदमी की सारी पकड़ बाहर है। और अब तुम एक ऐसी झंझट खड़ी कर ले रहे हो अपने मन के लिए कि जब तक अपने को न जान लेंगे. यह एक ऐसी शर्त है जो तुम पूरी न कर सकोगे। न होगी शर्त पूरी, न तुम कभी परमात्मा की खोज को जाओगे। यह तो तुमने ऐसा किया, न रहा बांस न बजी बांसुरी । तुमने तो प्रश्न की जड़ ही तोड़ दी। तुम्हारी खोज अवरुद्ध हो जायेगी। मैं तुमसे कहता हूं तुम इन बातों में मत पड़ो तुम परमात्मा को खोज लो। परमात्मा को खोजने ही तुम स्वयं को जान पाओगे। यहां स्वयं को जानना पहले नहीं होगा, पीछे होगा; छाया की तरह आयेगा। क्यों? क्योंकि परमात्मा तुम्हारा वास्तविक होना है। तुम्हारा होना तो छाया मात्र है। तुम्हारा होना तो भ्रम मात्र है, परमात्मा का होना वास्तविक है, शाश्वत है। तुम्हारा होना तो क्षणभंगुर सदा स्मरण रखो, किन्हीं होशियार तरकीबों से अपनी यात्रा को खराब मत कर लेना, अपने पैरों को लंगड़े मत कर लेना। चलो, जैसे हो। इसलिए तो जीसस कहते हैं, वे ही पहुंच पायेंगे मेरे प्रभु के राज्य में जो छोटे बच्चों की भांति हैं। नंग धडंग जैसे थे वैसे ही पहुंच गये। साज-संवार की फिक्र ही न की श्रृंगार ही न किया । उससे भी क्या छिपाना ! श्रृंगार करके भी क्या छिपेगा ! जिसने तुम्हें बनाया उससे क्या छिपाना! जिससे तुम आये उससे क्या छिपाना ! पाप है तो पाप । बुरा है तो बुरा भला है तो भला । जैसे हो ऐसे ही चल पड़ो तो ही पहुंच पाओगे और पहुंच गये तो क्रांति है। पहुंचने के पहले क्रांति की आशा रखना। पहुंच गये तो क्रांति है। जो पहुंचे वे बदले जो बदलने की राह देखते रहे वे बदले तो कभी नहीं पहुंचे भी नहीं पहुंचने से भी चूके
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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