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________________ दिनांक 30 जनवरी, 1977; श्री ओशो आश्रम, पूना । पहला प्रश्न : पूनम बन उतरो - ( प्रवचन - पांचवां ) एक ही प्रश्न उठ रहा है हृदय में और वह भी पहली बार कि कौन है तू? क्या है, कहां पर है? अपने से पूरी-पूरी पहचान हो जाये ताकि एक जान हो जायें। तू तू न रहे, मैं मैं न रहूं। एक दूजे में खो जायें। और जब तक पहचान नहीं होती तब तक एक कैसे हो जायें? और उचित भी यही है कि तभी मैं आपके दरबार में आऊं आने का मजा भी तभी रहेगा। ऐसे अपने मन को धोखे मत देना । निरंतर आदमी बचने की नई-नई तरकीबें खोज लेता है। परमात्मा के द्वार में भी तुम तब जाओगे जब अपने को जान लोगे तो परमात्मा के द्वार जाने की जरूरत क्या रह जायेगी? और यह अकड़ छोड़ो कि अपने को जानकर पहुंचेंगे, कुछ पात्रता लेकर पहुंचेंगे, कुछ योग्य बनकर पहुंचेंगे। यह तुम्हारी योग्यता और तुम्हारी पात्रता का रोग ही तो तुम्हें भटका रहा है। कुछ होकर पहुंचेंगे। ऐसे कैसे चले जायें नंग-धड़ंग ? कुछ साज-सामान से पहुंचेंगे। परमात्मा के दरबार में भी तुम जैसे हो वैसे ही नहीं जाओगे ? आयोजन करोगे? पहले और तरह के आयोजन थे सिंहासनों के, अब यह नया सिंहासन खोजा-आत्मज्ञानी होकर पहुंचेंगे। 'तभी तो मजा रहेगा।' तुम परमात्मा के सामने भी निरीह, अकिंचन बनकर खड़े न हो सकोगे? तुम परमात्मा के सामने भी अज्ञानी बनकर खड़े न हो सकोगे? वहां भी अहंकार को ले जाओगे? अपने को जानकर जाओगे? बात बड़ी ऊंची तुमने कही ऐसा लगता, लेकिन ऊंची बातों में हम बड़ी नीची बातें छिपा लेते हैं। आदमी की कुशलता अपार है। वह रोगों के ऊपर बड़ी सुगंधिया छिड़क लेता है। भ्रांतियों को भी अच्छे-अच्छे नाम दे देता है। यह आत्मज्ञान भी अहंकार की ही सूक्ष्म घोषणा है। वहां तो तुम ऐसे ही चले जाओ, जैसे हो। तैयार मत होओ। सजी मत। मजा इसमें ही है कि तुम जैसे हो ऐसे ही चले जाओ। तुम जैसे हो ऐसे ही वहां स्वीकार हो। जरा भी अन्यथा होने की जरूरत नहीं है। परमात्मा की कोई भी शर्त नहीं है तुम पर कि तुम ऐसे होओ, तब आ सकोगे। अगर किन्हीं ने शर्तें लगाई हैं तो परमात्मा ने नहीं, तुम्हारे महात्माओं ने लगाई हैं। कि पहले साधु बनो, पहले तपस्वी बनो, त्यागी बनो, आचरण, पुण्य - और इतनी शर्तें लगा दी हैं कि तुम जन्मों-जन्मों तक भी
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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