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________________ नैव प्रार्थयते लाभ नालाभेनानुशोचति । धीरस्य शीतल चित्तममृतेनैव पूरितम् । "धीर पुरुष का चित्त अमृत से पूरित शीतल है।' शीतल शब्द बड़ा बहुमूल्य है । जब अमृत से पहली दफा संबंध होता है, जब शाश्वत से पहली दफा मिलन होता है, तब तो अपूर्व हर्षोन्माद होता है। एक्सेसी घटती है। आदमी समाधिस्थ हो उठता है। आदमी नाचने लगता है। हजार-हजार सूरज, कबीर ने कहा है, एक साथ निकल आये हैं। हजार-हजार कमल, कबीर ने कहा है, एक साथ खिल गये हैं। सुगंध ही सुगंध है। अनंत तक सौंदर्य ही सौंदर्य है। एक अपूर्व दृश्य उपस्थित होता है। उत्तप्त हो जाता होगा योगी, जब ऐसा अमृत बरसता है। एक क्षण को जब बूंद में सागर उतरता है तो बूंद नाचेगी नहीं? नाच उठती होगी। जीवन की लगी आग दिग दहत दहके पवन आदोलित हुलास छल-छल छलके विलास सौरभ के मेले हैं ठौर - ठौर आसपास पुष्प को मिला सुहाग मधु महंत मह दिग - दहंत दहके..... कनबतियां कलियों की बरजोरी अलियो की मौसम के अधरों पर गजलें रंगरलियो की जयजयवंती बिहाग रागवत चहके दिग - दहत दहके...... सब खिला उठा। सब तरफ दिग-दिगत दहक उठे। एक अपूर्व ऊर्जा का विस्फोट हुआ गया सब धूल— धवांस भरा। गया सब जराजीर्ण । नित नूतन से मिलन हुआ। गई मृत्यु। गया वह जीवन, जिसमें मृत्यु घटती थी। गये जन्म और मृत्यु के चक्कर । अमृत उपलब्ध हुआ। अब नहीं कभी मिटना है। अब न कहीं जाना है, अब न कहीं आना है। तो पहले क्षण में तो अर बज उठती होगी। पायल बज उठती होगी। नृत्य जागता होगा। हर्षोन्माद शब्द ठीक है। हर्ष में उन्मत्त हो उठता होगा कोई । पागल हो उठता होगा। उड़ते स्वर के फाहे गीत बने चरवाहे घूम रहे गलियों में गज रहे चौराहे अंतस पर थाप पड़ी गमकी मंजीर लड़ी फिर आया है मौसम अपनापन खोने का भीगने - भिगोने का
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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