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________________ से...इसलिए गुरु का बड़ा अर्थ है। नहीं तो तुम्हारी मूढ़ता से तुम्हें कौन बचाये? ये सारे अनूठे प्रयोग अगर किसी गुरु के सान्निध्य में किये तो खतरा नहीं होगा। कोई नजर रखेगा, कोई खयाल रखेगा कि तुम्हारी मूढ़ता कहीं विपरीत परिणाम न लाने लगे। कोई तुम्हारे ऊपर ज्योतिस्तंभ की तरह खड़ा रहेगा। कोई दर्पण की तरह तुम्हारे चेहरे की सारी आकृतियों को प्रकट करता रहेगा। ___ एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन ने मुझसे पूछा कि आपकी घड़ी में कितने बजे हैं? मैंने कहा, ग्यारह। ग्यारह बजे थे। उसने बहुत हैरानी से मेरी तरफ देखा, अपने माथे पर जोर से हाथ मारा और कहा कि लगता है मैं पागल हो जाऊंगा। मैं भी थोड़ा हैरान हुआ। मैंने कहा इसमें पागल होने की क्या बात है? ग्यारह बजने से तेरे पागल होने का क्या संबंध? उसने कहा, है; संबंध क्यों नहीं है? आज दिन भर से पूछ रहा हूं, न मालूम कितने लोगों से पूछ चुका, सबने अलग-अलग समय बतलाया। मैं पागल हो जाऊंगा अगर...कोई एक समय बतलाता ही नहीं। कोई दस बतलाता, कोई नौ, कोई आठ, कोई साढ़े आठ! आखिर आदमी पागल न हो जाये तो करे क्या? 'मंदमति यथार्थ तत्व को सुनकर भी मूढ़ता को ही प्राप्त होता है।' इसलिए अपनी बुद्धि पर बहुत ध्यान रखना। अगर जरा भी अपनी बुद्धि पर संदेह हो तो किसी सदगुरु का साथ पकड़ लेना। जरा-सा भी अगर बुद्धि में शक हो कि अपने पैर से, अपने ही हाथ से हम कुछ गलत कर लेंगे, तो बचना। 'और कोई ज्ञानी मूढ़वत होकर संकोच या समाधि को प्राप्त होता है।' . ऐसी उलटी दुनिया है। यहां मूढ़ तत्व की बात सुनकर भी और मूढ़ हो जाता है और यहां ज्ञानी तो ऐसा कुशल होता कि ज्ञान की बात सुनकर मूढ़वत हो जाता है। संसार में ऐसा व्यवहार करने लगता जैसे मैं कुछ जानता ही नहीं; मूढ़वत हो जाता। और इस तरह संसार से अपने बहुत से व्यर्थ के संबंध छुड़ा लेता है। मूढ़वत हो जाता है तो लोग उसका पीछा ही छोड़ देते। मूढ़वत हो जाता है तो लोग उसकी चिंता नहीं करते। मूढ़वत हो जाता है तो लोग उसे उलझनों में नहीं डालते। मूढ़वत हो जाता है तो कोई उसे किसी काम में नहीं उलझाता। कहते हैं, महावीर जब संन्यस्त होना चाहते थे तो उन्होंने आज्ञा मांगी। लेकिन मां ने कहा, जब तक मैं जीवित हूं, संन्यास नहीं। तो वे रुक गये। फिर मां चल बसी। मरघट से लौटते थे, भाई से कहा, कि अब मैं संन्यास ले लूं? क्योंकि मां से वादा किया था, वह भी बात हो गई, वह भी चल बसी। भाई ने कहा, यह कोई वक्त है? इधर हम मां के मरने की पीड़ा से मरे जा रहे हैं कि मां चल बसी और तू छोड़ जाने की बात करता है? भूलकर यह बात मत करना। ___ तो वे चुप हो रहे। लेकिन फिर उन्होंने जीवन का एक ऐसा ढंग अख्तियार किया कि घर में किसी को पता ही नहीं चलता कि वे हैं भी कि नहीं। वे ऐसे चुप हो गये, ऐसे संकोच को उपलब्ध हो गये कि साल-दो साल में घर के लोगों को ऐसा लगने लगा कि उनका घर में रहना-न रहना बराबर है। आखिर घर के लोगों ने ही कहा कि अब हम आपको रोकें, यह ठीक नहीं। आप तो जा ही चुके। देह मात्र यहां है, प्राण-पखेरू तो जा चुके। आपकी आत्मा तो जा चुकी जंगल। अब हम रोकेंगे नहीं। घर के किसी काम में, घर के किसी व्यवस्था में कोई मंतव्य न देते। धीरे-धीरे सरक गये; शून्यवत हो गये। इसका नाम है संकोच। महाशय को केसा मोक्ष ! 73
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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