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________________ हो, ठीक ऐसे ही परिपूर्ण हो। सब स्पंदन मन के धोखे हैं। और स्पंदनों के कारण तुम वह नहीं देख पाते, जो तुम हो। जरा गौर से देखो। और जरा समझपूर्वक अपने भीतर उतरो। क्या कमी है? नाचना है, आनंदित होना है? कुछ भी तो कमी नहीं है। परमात्मा बरस रहा है। इस घड़ी जितना बरस रहा है, इससे ज्यादा कभी भी नहीं बरसेगा। इतना ही बरसता रहा है सदा से, इतना ही सदा बरसेगा। इसलिए कल की प्रतीक्षा मत करो। 'आशारहित...।' सुनते हैं? अष्टावक्र कहते हैं, ऐसा व्यक्ति आशारहित है। वह कोई आशाएं नहीं बांधता। जब आकांक्षा ही न रही तो आशा कैसी! निराशं गतसंदेहम्...। संदेहरहित है। अब उसको कोई संदेह नहीं है कि क्या सच है और क्या झूठ है। एक बात साफ हो गई है, देखनेवाला सच है और जो भी दिखाई पड़ रहा है, सब झूठ है। बस इतना ही सत्य है। इतना ही सारे शास्त्रों का सार है : जो भी दिखाई पड़ रहा है, झूठ है; और जो देख रहा है, सच है। अभी हमारी हालत उलटी है। जो दिखाई पड़ता है वह सच मालूम पड़ता है और जो देख रहा है उसका तो हमें पता ही नहीं। झूठ ही समझो। लोग पूछते हैं, आत्मा कहां है? जो पूछ रहा है वह आत्मा है। लोग पूछते हैं, आत्मा का दर्शन कैसे हो? आत्मा का कहीं दर्शन हो सकता है? जो दर्शन करेगा वही आत्मा है। आत्मा कभी दृश्य नहीं हो सकती। संसार पर तो भरोसा है, अपने पर कोई भरोसा नहीं है। जो दिखाई पड़ रहा है उसके पीछे तो दौड़ रहे हैं और जो देख रहा है उसको छुआ भी नहीं; उसके हाथ में हाथ डालकर कभी दो क्षण को शांत बैठे नहीं। ____ इतना ही सारे शास्त्रों का सार है : जो दिखाई पड़ता है, कल्पनावत है; और जो देख रहा है, वही सत्य है। रात तुम सपना देखते हो। सपने में सपना भी सच मालूम होता है, क्योंकि तुम्हारी आदत खराब हो गई है। तुम्हें जो दिखाई पड़ता है वही सच मालूम होता है। तुमने अभ्यास कर लिया है। जो दिखाई पड़ता है वही सच मालूम होता है। तुमने इस पर कभी विचार किया, कि सपना तक सच मालूम होता है! मूढ़ता की और कोई सीमा होगी? पागलपन और क्या होगा? और ऐसा नहीं है कि सपना तुमने पहली दफे देखा है इसलिए धोखा खा गये। जिंदगी भर से देख रहे हो। अनेक जिंदगियों से देख रहे हो। रोज सुबह उठकर पाते हो, झूठ था। और फिर रात, दूसरे दिन फिर...फिर खो गये। आज भी सुबह उठकर पाया था कि रात जो देखा, झूठ था। क्या तुम पक्का विश्वास दिला सकते हो कि फिर रात आ रही है. फिर सपना आयेगा. याद रख सकोगे? इतनी-सी बात याद नहीं रहती। इतनी बार दोहराकर याद नहीं रहती। फिर नींद पकड़ती है, फिर भ्रांति हो जाती है, फिर भूल हो जाती है, फिर सपना सच मालूम होता है। इसका कारण है। इसका कारण है कि तुम जो देखते हो वही सच मानने की आदत है। गुरजिएफ अपने शिष्यों को कहता था कि अगर तुम्हें सपने को सपने की तरह देखना हो तो सपने के साथ कुछ नहीं करना है, जागरण में कुछ करना पड़ेगा। और वह एक अभ्यास करवाता था। वह अभ्यास बड़ा कीमती है। वह कहता था कि दिन भर-तीन महीने तक कम से कम-जो भी दिखाई पड़े, होश से महाशय को कैसा मोक्ष। 69
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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