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________________ वर्षा होती है, तुम उल्टे घड़े की तरह भी हो सकते हो। घड़ा रखा रहे खुले आंगन में, वर्षा होती रहे, पानी न भरेगा। तुम फूटे घड़े की भांति भी हो सकते हो। सीधा भी रखा रहे, वर्षा भी होती रहे, पानी भरता भी रहे, फिर भी बचे न। तुम सीधे और बिन फूटे घड़े की भांति जब स्वीकार करोगे, तुम्हारे मन और मन के विचारों के छिद्र, जब जो मैं तुम्हें दे रहा हूं उसे बहा न ले जायेंगे, जब तुम मुझे निर्विचार होकर सुनोगे तो अछिद्र होकर सुनोगे; उस समय तुम्हारे घड़े में कोई छेद नहीं है। और जब तुम मुझे प्रेम, समर्पण से सुनोगे, श्रद्धा से सुनोगे तो तुम्हारा घड़ा सीधा है। तो वर्षा भर जायेगी। तुम्हें आशीर्वाद का अनुभव होगा। ये उत्तर नहीं हैं, आशीष ही हैं। ढोलक ठनके रूठी मन के रूठे प्रीतम के ढिग बेंसे घन बरसे घन बरसे, भीग धरा गमके घन बरसे रसधार गिरे, दिन सरस फिरे पपीहा तरसे न पिया तरसे घन बरसे घन बरसे, भीग धरा गमके घन बरसे और घन बरस रहा है। रसधार बह रही है। तुम्हारे हाथ में है, कितना पी लो। तुम मुझे दोषी न ठहरा सकोगे। न पीया तो तुम्ही जिम्मेवार हो। तुम मुझे उत्तरदायी न ठहरा सकोगे। तुम यह न कह सकोगे कि घन नहीं बरसे थे; कि रसधार नहीं बही थी। यह उपाय तुम्हारे लिए नहीं है। तुम यह न कह सकोगे कि हम बुद्ध के समय में नहीं थे और क्राइस्ट के समय में नहीं थे, और कृष्ण की बांसुरी को हमने नहीं सुना, क्या करें! तुम यह न कह सकोगे। बांसुरी बज रही है। नहीं सुने तो तुम ही सिर्फ जिम्मेवार हो। सुन लिया तो निश्चित ही आशीर्वाद की वर्षा हो जायेगी। और आशीर्वाद मुक्ति है। आशीष में निर्वाण है। प्रार्थना में शक्ति है ऐसी कि वह निष्फल नहीं जाती जो अगोचर कर चलाते हैं जगत को उन करों को प्रार्थना नीरव चलाती प्रार्थना से सुनो। प्रार्थनापूर्ण होकर सुनो। जो अगोचर कर चलाते हैं जगत को उन करों को प्रार्थना नीरव चलाती अगर तुमने प्रार्थनापूर्वक सुन लिया तो तुम्हारे प्राणों से जो भी उठेगा वह परमात्मा को चलाने लगता है। वही तो आशीर्वाद का अर्थ है। उसकी तरफ से आशीर्वाद बरसने लगते हैं। घन बरस 49.
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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