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________________ दो। कहीं ऐसा न हो कि घर जाकर सोचने लगो कि पता नहीं...। यह कहानी पूरी हो जाने दो। अंतिम परदा गिर जाने दो। कहीं ऐसा न हो कि बीच से उठ जाओ और फिर मन पछताये। और मन सोचे कि पता नहीं, असली दृश्य देखने को रह ही गये हों। अभी तो कहानी शुरू ही हुई थी। पता नहीं अंत में क्या आता है। इसलिए मैं कहता हूं कि जीवन को जीयो। भरपूर जीयो। डर कुछ भी नहीं है, क्योंकि वासना दुष्पूर है। तुम मेरा मतलब समझो। मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि चूंकि वासना दुष्पूर है, तुम लाख जीयो, आज नहीं कल तुम संन्यासी बनोगे। संन्यास से बचने का उपाय नहीं है। संन्यास संसार के अनुभव का नाम है। जिसने संसार का ठीक अनुभव ले लिया वह करेगा क्या और ? संन्यास संसार के अनुभव की निष्पत्ति है, सार है। मैं संन्यास को संसार का विरोधी नहीं मानता हूं। यह उसी जीवन की सारी अनूभूति का सार-निचोड़ है। जीकर देखा कि वहां कुछ भी नहीं है। जीकर देखा कि वासना भरती नहीं है। जीकर देखा कि वासना भूखा का भूखा रखती है, तृप्त नहीं होने देती। जीकर देखा कि दुख ही दुख है; नर्क ही नर्क है। इसी अनुभव से आदमी ऊपर उठता और इसी अनुभव से जीवेषणा विसर्जित हो जाती; जीने की आकांक्षा चली जाती। जीने की आकांक्षा के चले जाने का नाम ही मुमुक्षा है : मोक्ष की आकांक्षा। मोक्ष का क्या अर्थ होता है? अब और नहीं जीना चाहता। बहुत जी लिया। नहीं, अब और नहीं जीना चाहता। देख लिया सब, जो देखने को था। सब नाटक पूरे हुए। सब कथायें पूरी पढ़ लीं। जीवन का पाठ अपने अंतिम निष्कर्ष पर आ गया। संन्यास संसार के प्रगाढ़ अनुभव का नाम है। इसलिए कहता हूं कि अनुभव से कच्चे मत भागना। संसार से कच्चे भागे तो संन्यास भी कच्चा रह जायेगा। और कच्चा संन्यास दो कौड़ी का है। यह संसार की आग में तुम्हारा घड़ा पके। तुम पककर बाहर आओ। ___ पूछते हो, 'वासना स्वभाव से दुष्पूर है, ऐसा आप कहते हैं। और फिर यह भी कहते हैं कि रस को पूरा भोग लो, इनमें विरोधाभास दिखाई पड़ता है।' दिखाई पड़ता है, क्योंकि तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता। ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। वासना दुष्पूर है, इसीलिए रस से मुक्त हुआ जा सकता है। और जब रस से मुक्त हुआ जा सकता है और वासना भरती ही नहीं तो जल्दी क्या है? घबड़ाहट क्या है ? इतना अधैर्य क्या है? इस संसार में कितने ही गहरे जाओ, कुछ हाथ न लगेगा। इसलिए मैं कहता हूं, दिल भरकर जाओ। वे जो तुमसे कहते हैं कि मत जाओ, संसार में जाने में खतरा है, मुझे लगता है, उन्हें अभी पक्का पता नहीं। उन्हें एक डर है कि कहीं ऐसा न हो कि तुम भरम जाओ। उन्हें भय है। उन्हें लगता है, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी वासना तृप्त ही न हो जाये; कहीं फिर तुम मोक्ष की आकांक्षा ही न करो। उन्हें डर है कि कहीं यह क्षितिज मिल ही न जाये। मिल गया तो फिर तुम न लौटोगे।। उनका भय तुम समझते हो? उनका भय उनका अज्ञान है। मैं तुमसे कहता हूं, जाओ। जहां जाना घन बरसे 37
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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