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________________ पहला प्रश्न : आप कहते हैं कि समझ पैदा हो जाये तो कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। आप जिस समझ की तरफ इशारा करते हैं, क्या वह बुद्धि की समझ से भिन्न है ? असली समझ पर कुछ प्रकाश डालने की अनुकंपा करें । द्धि की समझ तो समझ ही नहीं । बु समझ है । बुद्धि की समझ तो तरकीब है अपने को नासमझ रखने की । बुद्धि का अर्थ होता है : जो तुम जानते हो उस सबका संग्रह । जाने हुए के माध्यम से अगर सुना तो तुम सुनोगे ही नहीं । जाने हुए के माध्यम से सुना तो तुम ऐसे ही सूरज की तरफ देख रहे हो, जैसे कोई आंख बंद करके देखे । जो तुम जाने हुए बैठे हो – तुम्हारा पक्षपात, तुम्हारी धारणाएं, तुम्हारे सिद्धांत, तुम्हारा शास्त्र, तुम्हारे संप्रदाय – अगर तुमने उनके माध्यम से सुना तो तुम सुनोगे कैसे? तुम्हारे कान तो बहरे हैं। शब्द तो भरे पड़े हैं। कुछ का कुछ सुन लोगे । वही सुन लोगे जो सुनना चाहते हो। बुद्धि का अर्थ है : तुम्हारा अतीत - अब तक तुमने जो जाना, समझा, गुना है। समझ का अतीत से कोई संबंध नहीं। समझ तो उसे पैदा होती है जो अतीत को सरका कर रख देता है नीचे; और सीधा वर्तमान के क्षण को देखता है—अतीत के माध्यम से नहीं, सीधा-सीधा, प्रत्यक्ष, परोक्ष नहीं । बीच में कोई माध्यम नहीं होता । तुम अगर हिंदू हो और मुझे सुनते वक्त हिंदू बने रहे तो तुम जो सुनोगे वह बुद्धि से सुना । मुसलमान बने रहे तो जो सुना, बुद्धि से सुना । गीता भीतर गूंजती रही, कुरान भीतर गुनगुनाते रहे और सुना, तो बुद्धि से सुना। गीता बंद हो गई, कुरान बंद हो गया, हिंदू-मुसलमान चले गये, तुम खाली हो गये निर्मल दर्पण की भांति, जिस पर कोई रेखा नहीं विचार की, अतीत की कोई राख नहीं; तुमने सीधा मेरी तरफ देखा खुली आंखों से, कोई पर्दा नहीं, और सुना तो एक समझ पैदा होगी। उस समझ का नाम ही प्रज्ञा, विवेक । वही समझ रूपांतरण लाती है। बुद्धि से सुना तो सहमत हो जाओगे, असहमत हो जाओगे । बुद्धि को हटाकर सुना, रूपांतरित हो जाओगे; सहमति-असहमति का सवाल ही नहीं । सत्य के साथ कोई सहमत होता, असहमत होता ? सत्य के सत्य के साथ सहमत होने का तो यह अर्थ होगा कि तुम पहले तुमने कहा, ठीक; यही तो सच है । यह तो प्रत्यभिज्ञा हुई। यह तो तुम मानते थे पहले से, जानते थे साथ बोलो कैसे सहमत होओगे ? 'जानते थे । सुना, राजी हो गये ।
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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