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________________ नहीं नाच पाता । । तुमने बागडोर उसके हाथ में दी ही नहीं। तुम बागडोर उसके हाथ में दे दो, फिर होता है ना। फिर तुम इस विराट नृत्य के एक अंग हो जाते हो । चौथा प्रश्न : संन्यास में दीक्षा लेने पर आप अपने शिष्यों को सुंदर-सुंदर नाम देते हैं। इन सुंदर नामों का रहस्य और अर्थ समझाने की कृपा करें। ना तो चाहूं तो कह सकता हूं, स्वामी चूहड़मल फूहड़मल। नाम बस नाम दे देता हूं। इसमें कुछ बहुत अर्थ नहीं है। नाम में अर्थ हो भी क्या सकता है? अर्थ तो होता काम में। तुम नाम के भरोसे मत रुके रह जाना। कुछ करोगे तो कुछ होगा। कुछ होने दोगे तो कुछ होगा। कितना ही सुंदर नाम दे दूं, इससे क्या होगा ? काश, नाम बदल देने से जीवन बदलते होते, कितना सरल होता ? म बस नाम है। जब देना ही है तो सुंदर दे देता हूं, असुंदर क्यों दूं? ऐसे और जब देना ही है तो सुंदर सुंदर नाम देकर मैं अपनी आकांक्षा, अपनी अभीप्सा प्रगट कर रहा हूं। सुंदर नाम देकर मैं अपन आशीष तुम्हें दे रहा हूं कि मैंने सुंदरतम तुममें चाहा है ! अब तुम कुछ करो। सुंदर नाम देकर मैंने तुम्हें बड़ा उत्तरदायित्व दे दिया। अब तुम्हें पूरा करना है। सुंदर नाम देकर मैंने तुम्हें एक चुनौती दे दी। तुम्हें एक बुलावा दे दिया, एक आमंत्रण दे दिया कि अब यह यात्रा करनी है। अब यह नाम याद रखना। अब यह नाम तुम्हें सतायेगा । एक पुरानी कथा तुमसे कहूं। बहुत पुरानी कथा है। किसी बालक के मां-बाप ने उसका नाम पापक, पापी रख दिया। लोग भी खूब हैं। किसी का नाम रख देते हैं पोपट, घसीटामल, घासीराम; जैसे नामों की कुछ कमी है। पापक ? अब ऐसे ही आदमी पापी है, अब और कम कम नाम तो न रखो। इतनी तो कृपा करो। लेकिन रख दिया। मैं माऊंट आबू शिविर लेने जाता था, वहां एक बगीचा है: शैतानसिंह उद्यान । किसी का नाम शैतानसिंह है । और कोई नाम न सूझा ? तो किसी ने रख दिया होगा पापक। बालक बड़ा हुआ तो उसे यह नाम बहुत बुरा लगने लगा, खटकने लगा। हर कोई कहे, कहो पापी ! कहां चले जा रहे हो? ऐसा नहीं कि पापी नहीं था; जैसे सब अवनी पर आकाश गा रहा 371
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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