SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं, वह बीच की भी क्यों फिक्र रखे हुए है? जो पहले सम्हालता है, पीछे सम्हालता है, वह बीच में भी सम्हाल लेगा । ऐसा जो छोड़ दे उसको ही अष्टावक्र कहते हैं, वही हुआ ज्ञाता । वही हुआ द्रष्टा । वही अब न रहा भोक्ता, न रहा कर्ता । और जहां भोक्ता और कर्ता खो जाते हैं वहीं परमात्मा है। मैं तुमसे कहता हूं नृत्य की परिभाषा: जब नर्तक मिट जाये। ऐसे नाचो, ऐसे नाचो कि नाच ही बचे। ऊर्जा रह जाये, अहंकार का केंद्र न रहे । | और नृत्य जितनी सुगमता से परमात्मा के निकट ले आयेगा और कोई चीज कभी नहीं ला सकती। और नृत्य बड़ा स्वाभाविक है। आदमी है अकेला, जो भूल गया। सारा संसार नाच रहा है आदमी को छोड़कर। आदमी भी नाचता था । आदिम आदमी अब भी नाच रहे हैं, सिर्फ सभ्य आदमी वंचित हो गया है। सभ्य आदमी नाच भूल गया है। जड़ हो गया है। पत्थर की तरह हो गया है । झरना नहीं है कि बहे । निर्झर नहीं है । थोड़ा अपने को पिघलाओ। थोड़ा छूने दो प्रभु को तुम्हें । फागुन ने क्या छू लिया तनिक मन को कर्पूरी देह अबीर हो गई है क्या छुए मधुर गीतों ने रसिक अधर धड़कन धड़कन मंजीर हो गई है अंगों पर फैल गई केसर क्यारी नभ बाहों में भरने की तैयारी बढ़ गई अचानक चंचलता लट की सीमा रेखाएं सिमटीं घूंघट की अवनी पर आकाश गा रहा सांसों को क्या छू गई मदिर सांसें गंधायित मलय समीर हो गई है फागुन ने क्या छू लिया तनिक मन को कर्पूरी देह अबीर हो गई है फागुन भी छू ले तो देह अबीर-अबीर हो जाती है। देह कस्तूरी-कस्तूरी हो जाती है। तुम जरा सोचो, परमात्मा छू ले तो तुम नाच उठोगे। तुम नाच उठो तो परमात्मा छू ले । अब तुम यह मत पूछना कि क्या पहले है? तुम मुर्गी अंडे के सवाल मत उठाना कि मुर्गी पहले कि अंडा पहले। उस उलझन में उलझोगे तो कभी सुलझ न पाओगे। इतना ही तुमसे कहता हूं, एक वर्तुल है। तुम नाचो तो परमात्मा छू ले । परमात्मा छू ले तो तुम नाच उठो । अब परमात्मा छू ले यह तो तुम्हारे हाथ में नहीं, एक बात तुम्हारे हाथ में है कि तुम नाचो। तुम नाचो, उसे मौका दो कि तुम्हें छू ले । नाचते में ही छू सकता है तुम्हें। अभी तो तुम अकड़े-अकड़े बैठे हो। अभी तो तुम पानी जैसे जम गया, बरफ हो गये ऐसे हो गये हो। थोड़ा पिघलो । थोड़ा बहो । 369
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy