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________________ है कि पूरब में न मालूम कितने मूढ़ पुरुष पूजे जाते रहे हैं इस आशा में कि वे परमहंस हैं। ___मैं जानता हूं, मेरे गांव में एक सज्जन थे, उनकी बड़ी दूर तक ख्याति थी। बड़े दूर-दूर से लोग उनका दर्शन करने आते थे। और मैं उन्हें बचपन से जानता था। फिर उन जैसा मूढ़ आदमी मैंने दुबारा देखा ही नहीं। वे बिलकुल मूढ़ थे। जिसको जड़बुद्धि कहते हैं वैसे थे। लेकिन लोग उनको परमहंस मानते थे। दूर-दूर से लोग उनका दर्शन करने आते थे। और लोग बड़े प्रसन्न होते थे उनका दर्शन करके। वे कुछ ठीक से बोल भी नहीं सकते थे। मूढ़ थे-ईडियट जिसको कहते हैं। अनर्गल कुछ न कुछ उनके मुंह से निकलता था, लोग उसी में से मतलब निकालते थे कि गुरुदेव ने क्या कहा। मैं उनके पास कई दफे बैठकर सुनता रहा। मैं बड़ा हैरान होता कि उन्होंने कुछ कहा ही नहीं। मतलब निकालनेवाले अपना मतलब निकाल लेते। उनको देखकर उनके सिर हिलाने को देखकर या कल उनका हिसाब लगाकर कोई जाकर लाटरी का टिकट खरीद लेता, कोई दांव लगा देता, कोई कुछ कर लेता। और इसमें से कछ जीत भी जाते. कछ हार भी जाते। जो हार जाते. वे समझते हमने गलत मतलब लगाया। जो जीत जाते वे कहते, कहो गुरुदेव ने रास्ता बता दिया। ___ उनकी लार टपकती रहती। मगर लोग कहते वे परमहंस हैं। अरे उन्हें क्या! वे तो बालवत हो गये हैं। उसी लार टपकते में लोग उनको चाय पिलाते रहते, वे चाय पीते रहते। लार टपक जाती, वे दूसरे को वह चाय पकड़ा देते, वह पी लेता। वह अमृत का दान ! उनसे ठीक से न बोलते बनता, न कुछ। अगर वे पश्चिम में होते तो पागलखाने में होते। पूरब में थे तो परमहंस थे। इससे उल्टी हालत पश्चिम में हो रही है। पश्चिम में कुछ परमंहस पागलखानों में पड़े हैं। क्योंकि वहां कोई परमहंस को नहीं मान सकता। वहां परमहंस पागल मालूम होता है, यहां पागल परमहंस बन जाते हैं। आज इसके बाबत पश्चिम में चिंता पैदा हो रही है। आर. डी. लैंग नाम के बड़े प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक ने बड़ी क्रांतिकारी धारा पैदा की है, कि बहुत पागलखानों में बंद हैं जो पागल नहीं हैं। हां, जो सामान्य नहीं हैं, जिनकी दृष्टि सामान्य के जरा ऊपर चली गई है वे पागलखानों में डाल दिये गये हैं। क्योंकि उनकी दृष्टि कुछ ऐसी असामान्य है कि भीड़ उनको मानने को राजी नहीं है। वे विक्षिप्त नहीं हैं, वे पूजा के योग्य हैं। वे पागलखानों में पड़े हैं। आर. डी. लैंग मुझे अपनी किताबें भेजते हैं, तो मैं सोचता हूं कभी न कभी वे यहां आयेंगे। आयेंगे तो उनको कहूंगा, इससे उल्टी बात हम यहां कर चुके हैं। यहां हमने पागलों को परमहंस बना दिया है। दोनों खतरनाक बातें हैं। न तो पागल परमहंस हैं, न परमहंस पागल हैं। पागल पागल हैं, परमहंस परमहंस हैं। ये बड़ी अलग बातें हैं। परमहंस का अर्थ होता है, जिसे दिखाई तो सब पड़ता है लेकिन एक और चीज दिखाई पड़ती है जो तुम्हें नहीं दिखाई पड़ती। उसे दिखाई जिसको पड़ रहा है वह भी दिखाई पड़ता है। उसे द्रष्टा भी दिखाई पड़ता है। वह जीता है द्रष्टा से। दृश्य में उसकी अब कोई राग-विराग की दशा नहीं रही। इसे स्मरण रखना। एक-एक सूत्र अमूल्य है। अष्टावक्र का एक-एक सूत्र इतना अमूल्य है कि अगर तुम एक सूत्र को भी जीवन में उतार लो तो परमात्मा तुम्हारे जीवन में उतर जायेगा। एक सूत्र तुम्हारे जीवन का द्वार खोल सकता है। और तुम्हें कभी ऊपर-ऊपर से लगेगा कि ये सब सूत्र पुनरुक्ति 348 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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