SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 351
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुम तत्क्षण उनको पकड़ लेते हो और कुछ इस ढंग से उनके साथ व्यवहार करते हो कि सब दुख हो जाता है। धन में कोई दुख नहीं है। और जिन्होंने तुमसे कहा है, धन में दुख है; वे नासमझ रहे होंगे। दुख तुम है। दुख तुम्हारी मूढ़ता में है। तुमको धन मिल जाता है तो अवसर मिला। धन न हो तो दुख भी तो खरीदने के लिए सुविधा चाहिए न ! दुखी होने के लिए भी तो अवसर मिलना चाहिए। को मैं तुमसे कहता हूं कि धन में दुख नहीं है, दुख तुम्हारी आदत है। हां, बिना धन के शायद तुम उतने दुखी नहीं हो पाते, क्योंकि धन चाहिए न खरीदने को ! दुख भी खरीदने के लिए धन तो चाहिए, अवसर तो चाहिए। तुम वेश्यालय नहीं गये क्योंकि सुविधा नहीं थी। तुम सज्जन थे क्योंकि दुर्जन होने के लिए भी मौका चाहिए। तुमने जुआ नहीं खेला क्योंकि खेलने के लिए भी तो पैसे चाहिए। तुम लड़े-झगड़े नहीं क्योंकि कौन झंझट में पड़े – अदालत, मुकदमा, वकील ! लेकिन तुम्हारे पास पैसे आ जायें तो ये सारी वृत्तियां तुममें भरी पड़ी हैं। और ये सारी वृत्तियां प्रगट होने लगेंगी। ऐसा ही समझो कि वर्षा होती है तो जिस जमीन में फूल के बीज पड़े हैं वहां फूल निकल आते हैं और जहां कांटे बीज पड़े हैं वहां कांटे निकल आते हैं। तो जिन्होंने तुमसे कहा है धन में दुख है, जरूर कहीं उनके जीवन में दुख की आदत थी। वर्षा है। जनक जैसे आदमी के पास धन हो तो कुछ अड़चन नहीं। कृष्ण जैसे आदमी के पास धन हो कुछ अड़चन नहीं। जिसको सुख की आदत है वह तो निर्धन अवस्था में भी धनी होता है, तो धनी होकर तो खूब धनी हो जाता है । इस बात को ठीक से समझ लेना । यह मेरे मौलिक आधारों में से एक है। इसलिए मैं तुमसे नहीं कहता कि धन से भागो । मैं तुमसे कहता हूं, धन तो तुम्हें एक आत्मदर्शन का मौका देता है। लोग कहते हैं, अगर शक्ति हाथ में आ जाये तो शक्ति भ्रष्ट करती है। मैं कहता हूं, गलत कहते हैं। लार्ड बेन ने कहा है, 'पावर करप्ट्स एण्ड करप्ट्स एबसोल्यूटली।' गलत कहा है, बिलकुल गलत कहा है। शक्ति कैसे किसी को व्यभिचारी कर देगी ? नहीं, तुम व्यभिचारी हो, शक्ति मौका देती है। इधर इस देश में हुआ। गांधी के अनुयायी थे, सत्याग्रही थे, समाजसेवक थे। जब सत्ता हाथ में आई तो सब भ्रष्ट हो गये। लोग कहते हैं सत्ता ने भ्रष्ट कर दिया। मैं कहता हूं भ्रष्ट थे, सत्ता ने मौका दिया। सत्ता कैसे भ्रष्ट करेगी ? तुम बुद्ध को सिंहासन पर बिठाल दो और बुद्ध भ्रष्ट हो जायें तो इसका मतलब यह हुआ कि बुद्ध छोटे हैं, सिंहासन ज्यादा ताकतवर । यह कोई बात हुई ! बुद्ध और सिंहासन से हार गये ! नहीं, यह कोई बात जंचती नहीं । अगर सिंहासन हार जाता है तुम्हारा बुद्धत्व तो उसका इतना ही अर्थ है, बुद्धत्व थोपा हुआ होगा, जबर्दस्ती आरोपित किया हुआ होगा । जब अवसर आया तो मुश्किल हो गई। नपुंसक होने में ब्रह्मचारी होना नहीं है। जब तुममें ब्रह्मचर्य की वास्तविक ऊर्जा घटेगी तो वह काम - ऊर्जा की ही प्रगाढ़ता होगी। अगर काम - ऊर्जा ही नष्ट हो गई और फिर तुम ब्रह्मचारी हो गये तो वह कोई ब्रह्मचर्य नहीं है। वह धोखा है। वह आत्मवंचना है। ज्ञानी तो व्यवहार में भी सुखपूर्वक है, शांत है बाजार में भी, दूकान में भी । व्यवहार यानी बाजार और दूकान । और जो ज्ञानी नहीं है वह तो हर हालत में... कभी तुम उसे मंदिर में भी बैठे देखो तो भी मूढ़ कौन, अमूढ़ कौन ! 337
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy