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________________ इस पूरे वक्त। क्योंकि तुमको तो लोग समझ रहे थे, तुम बेहोश हो, सब मुसीबत मुझ पर आ रही थी कि तुम किस आदमी को लेकर चढ़ गए ट्रेन में! वह आदमी प्रसिद्ध आदमी था; एक बड़ा पत्रकार था, लेखक था। उसको लोग जानते भी थे। उसकी खूब बेइज्जती करवाई उसने। लेकिन उस पत्रकार ने लिखा है कि उस दिन के बाद मेरे जीवन में बड़े फर्क भी हुए। दूसरे दिन सुबह मैं बिलकुल हलका उठा, जैसे मेरा पहाड़ उतर गया। वह अहंकार, कि मैं बड़ा प्रसिद्ध फलां-ढिकां...उसने सब मिट्टी करवा दिया। वही मेरा इलाका था जहां लोग मुझे जानते हैं। उसने सब पानी फेर दिया। और दूसरे दिन मैं बिलकुल हलका उठा-निर्भार! कठिन है कहना, ज्ञानी का व्यवहार कैसा हो? कर्तव्यतैव संसारो न तां पश्यन्ति सूरयः। शून्याकारा-वह भीतर तो शून्य बना रहता; बाहर कुछ भी व्यवहार करे। निराकारा–बाहर कैसा ही अभिनय करे, भीतर निराकार बना रहता है। निर्विकारा—तुम उसे शराबघर में देखो कि वेश्यालय में, कोई फर्क नहीं पड़ता। वह भीतर निर्विकार बना रहता है। निरामया-तुम उसे कैसी भी दशा में देखो, वह दुखरहित होता। गुरजिएफ के जीवन में और भी उल्लेख हैं, जो बड़े महत्वपूर्ण हैं। गुरजिएफ ने आखिरी समय अपनी कार को टकरा लिया एक वृक्ष से। उसे कार चलाने का शौक था और दौड़ाता था सीमा के बाहर। जब उसकी कार टकराई तो ऐसी कार की हालत हो गई थी कि उसे कार से निकालने में डेढ़ घंटा लगा-गुरजिएफ को बाहर निकालने में। उसका शरीर इस बुरी तरह उलझ गया था कार के भीतर, सब चकनाचर हो गया था। लेकिन जो लोग निकाल रहे थे उनको उसने सब बताया कि कैसे निकालो। वह पूरे होश में था। जब उसे बाहर निकाल लिया गया तो उसने बताया कि कहां-कहां पट्टियां बांधो। सारा शरीर चकनाचूर था। और जब छत्तीस घंटे बाद उसे बड़े अस्पताल में लाया गया तो डाक्टरों ने माना ही नहीं कि आदमी जिंदा रह सकता है। यह असंभव है। उसके सारे फेफड़ों में खून भरा था, उसके सारे मस्तिष्क में खून भरा था। न केवल वह जिंदा था, वह परिपूर्ण होश से जिंदा था। वह डाक्टरों से बात करता रहा और डाक्टरों को भरोसा न आया कि आदमी बेहोश नहीं है। उसके शिष्य जानते थे कि उसने जानकर किया। वह मरने के पहले मृत्यु को स्वेच्छा से देख लेना चाहता था। वह अपने शरीर को आखिरी विकृति में डालकर देख लेना चाहता था कि फिर भी मेरा होश रह सकता है कि नहीं। डाक्टरों ने कहा, यह बच ही नहीं सकता। यह आदमी मर ही जाना चाहिए। ऐसा कोई उल्लेख ही नहीं अब तक कि ऐसा आदमी बच सके। लेकिन वह बच गया। न केवल बच गया, उसने कोई दवा न ली। उसने किसी तरह का इंजेक्शन न लिया। उसने किसी तरह की शामक ट्रैक्वेलाइजर न ली। उसने कहा कि नहीं, कुछ भी नहीं। ___ और इतना ही नहीं, वह दूसरे दिन सुबह अपने शिष्यों के बीच बैठा समझा रहा था। उसको लाया गया स्ट्रेचर पर। मगर वह समझा रहा था, जो बातें उसे समझानी थीं। और तीन सप्ताह के भीतर वह बिलकुल चंगा था; फिर चलने लगा, फिर ठीक हो गया। 292 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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