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________________ सोया था, झपकी ली थी। तो उसने कहा, तुमने हो न हो लकड़हारे का सपना देखा है। और सपने में लकड़हारा तुम्हें दिखाई पड़ा। तो वह आदमी कहने लगा, अगर लकड़हारा सपने में देखा है तो यह बारहसिंगा तो मौजूद है न! तो उसकी स्त्री ने कहा, ज्ञानी कहते हैं, सपने में और सत्य में फर्क कहां ? सपने भी सच होते हैं और जिसको हम सच कहते हैं, वह भी झूठ होता है। हो गया होगा सपना सच । निश्चित हो गया वह आदमी। अपराध का एक भाव था कि लकड़हारे को धोखा दिया, वह भी चला गया। रात लकड़हारे ने एक सपना देखा कि उस आदमी ने जंगल में जाकर खोज लिया गड्डा । और वह बारहसिंगे को घर ले गया। वह आधी रात उठकर उसके घर पहुंच गया। दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खोला तो बारहसिंगा आंगन में पड़ा था। तो उसने कहा, यह तो बड़ा धोखा दिया तुमने। मैंने सपना देखा, तुम्हें निकालते देखा और बारहसिंगा तुम्हारे द्वार पर पड़ा है। ऐसी बेईमानी तो नहीं करनी थी। मुकदमा अदालत में गया। मजिस्ट्रेट बड़ा मुश्किल में पड़ा । मजिस्ट्रेट ने कहा, अब यह बड़ी उलझन की बात है। लकड़हारा सोचता है कि उसने सपना देखा था। तुम्हारी पत्नी कहती है कि तुमने सपना देखा कि लकड़हारा देखा था । अब लकड़हारा कहता है कि सपने में उसने देखा कि तुम बारहसिंगा ले आए। जो हो, इस पंचायत में मैं न पडूंगा। यह कानून के भीतर आता भी नहीं सपनों का निर्णय। एक बात सच है कि बारहसिंगा है, सो आधा-आधा तुम बांट लो । यह फाइल राजा के पास पहुंची दस्तखत के लिए, स्वीकृति के लिए । राजा खूब हंसने लगा। उसने कहा, यह भी खूब रही। मालूम होता है इस न्यायाधीश का दिमाग फिर गया है। इसने यह पूरा मुकदमा सपने में देखा है। उसने अपने वजीर को बुलाकर कहा कि इसको सुलझाना पड़ेगा। वजीर ने कहा, देखिए, ज्ञानी कहते हैं, जिसको हम सच कहते हैं वह सपना है। और अब तक कोई पक्का नहीं कर पाया है कि क्या सपना है और क्या सच है । और जो जानते थे प्राचीन पुरुष - लाओत्सु जैसे, वे अब मौजूद नहीं दुर्भाग्य से, जो तय कर सकें कि क्या सपना और क्या सच। यह हमारी सामर्थ्य के बाहर है। न्यायाधीश ने जो निर्णय दिया, आप चुपचाप स्वीकृति दे दें। इस उलझन में पड़ें मत। क्योंकि केवल ज्ञानी पुरुष ही तय कर सकते हैं कि क्या सच है और क्या सपना है। मैं तुमसे कहना चाहता हूं, ज्ञानी पुरुष ही तय कर सकते हैं कि क्या सपना है और क्या सच है। लेकिन हम क्यों नहीं तय कर पाते ? हम चूकते क्यों चले जाते हैं? हम चूकते चले जाते हैं क्योंकि हम सोचते हैं, जो देखा उसमें ही तय करना है। जो देखा उसमें क्या सच और जो देखा उसमें क्या झूठ । दिन में देखा वह सच हम कहते हैं, रात जो देखा वह झूठ। जागकर जो देखा वह सच, सोकर जो देखा वह झूठ । आंख खुली रखकर जो देखा वह सच, आंख बंद रखकर देखा जो झूठ । सबके साथ जो देखा सच, अकेले में जो देखा वह झूठ। लेकिन हम एक बात कभी नहीं सोचते कि हम देखे और देखे में ही तौल करते रहते हैं। ज्ञानी कहते हैं, जिसने देखा वह सच, जो देखा वह सब झूठ - जागकर देखा कि सोकर देखा, अकेले में देखा कि भीड़ में देखा, आंख खुली थी कि आंख बंद थी - जो भी देखा वह सब झूठ | देखा देखा सो झूठ । जिसने देखा, बस वही सच | 270 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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