SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेकिन अपनी-अपनी सामर्थ्य से जितना कर सकता हूं, करता हूं। मैंने कहा, मैं कुछ समझा नहीं। तो उसने कहा कि देखें, कुरान में लिखा है : 'शराब पीयोगे यदि तो दोजख में पड़ोगे।' तो अभी मैं आधे ही वचन तक पहुंचा हूं-'शराब पीयोगे...।' इससे आगे अभी मेरी सामर्थ्य नहीं है। धीरे-धीरे जाऊंगा। आगे भी जाऊंगा मगर अभी तो 'शराब पीयोगे' इतने तक...इतने तक रस आ रहा है। यह भी कुरान की ही आज्ञा है। मैं कोई कुरान के विपरीत नहीं चल रहा हूं। ____ आदमी बड़ा चालबाज है। तुम यहां सुन रहे हो अष्टावक्र को। अष्टावक्र कहते हैं, न संन्यास की जरूरत, न ध्यान की जरूरत, न अध्यात्म की जरूरत, न शास्त्र की, न गुरु की। तुम बड़े प्रसन्न हो रहे होओगे। तुम कह रहे होओगे, वाह! यह तो हम सदा ही कहते थे कि किसी चीज की कोई जरूरत नहीं। लेकिन तुम अष्टावक्र को नहीं समझ रहे। ___ अष्टावक्र की बात बड़ी ऊंची है। अष्टावक्र कह रहे हैं, सीढ़ी की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि छत पर पहुंच गये हैं। और तुम खड़े हो नीचे, तलघरे में। और तुम सुनकर बड़े प्रसन्न हो रहे हो कि सीढी की कोई जरूरत नहीं है। तम्हें तो सीढी की जरूरत है। हां. एक दिन सीढी की जरूरत नहीं रह जायेगी। वह सौभाग्य का दिन भी आयेगा कभी, लेकिन सीढ़ी से गुजर कर ही आयेगा; और कोई उपाय नहीं है। तुम तो अभी वहां पड़े हो जहां ध्यान भी दुस्तर है। ध्यान के अतीत जाना तो अभी कल्पना के बाहर है। अभी तो तुम विचार में पड़े हो, विकृत विचार में पड़े हो। अष्टावक्र निर्विचार की अवस्था से बोल रहे हैं कि विचार की कोई जरूरत नहीं। विचार की कोई जरूरत नहीं इसलिए ध्यान की भी कोई जरूरत नहीं। समझने की कोशिश करना। वे कह रहे हैं कि विचार जब होता है तो ध्यान की जरूरत होती है। विचार बीमारी है, ध्यान औषधि। जब विचार की ही कोई जरूरत नहीं है ऐसा समझ गये तो फिर ध्यान की भी कोई जरूरत नहीं। लेकिन तुम क्या करोगे? विचार में तो रहे आओगे और ध्यान की जरूरत नहीं है उतना समझ लोगे। विचार इससे मिटेगा नहीं। अगर ध्यान की जरूरत नहीं है, ऐसा तुम्हारी समझ में पूरा-पूरा उतर गया तो इसका अर्थ है, इसके पहले यह तम्हारी समझ में उतर चका होगा कि विचार की कोई जरूरत नहीं। जब विचार की कोई जरूरत नहीं तो फिर ध्यान की भी कोई जरूरत नहीं। इतना खयाल रखना। इसको कसौटी मानकर रखना। इसलिए झंझट आ रही है। 'ध्यान, अध्यात्म, संन्यास, सब व्यर्थ की बकवास हैं, और मन में फिर भी एक अजीब-सी बेचैनी बनी रहती है।' . वह बनी ही रहेगी। क्योंकि तुम बड़ी ऊंची बात ले उड़े। जमीन पर सरक रहे हो। आकाश का सपना देख लिया। कह दिया, पंखों की कोई जरूरत नहीं। उड़ न पाओगे, फिर घसिटते ही रहोगे। इसलिए में तुमसे कहता है, विचार की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन विचार से कैसे छटोगे? अगर समझ इतनी गहरी हो, इतनी प्रगाढ़ हो, ऐसी धारवान हो कि इतनी बात सुनकर ही तुम विचार को छोड़ दो, तब तो फिर ध्यान की भी कोई जरूरत नहीं, बात खतम हो गई। लेकिन तब मन में बेचैनी न रहेगी। बात ही समाप्त हो गई। मन ही समाप्त हो गया, बेचैनी कहां होगी? न रहा बांस, न बजेगी बांसुरी। 198 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy