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________________ सुनाई पड़ते हैं। जब तुम आनंदित होते हो तो लगता है, सारा जगत महोत्सव है। जब तुम दुखी हो जाते हो, सारा जगत दुखी हो जाता है। जब तुम पीड़ा से भर जाते हो तो फूल दिखाई नहीं पड़ते, कांटे ही कांटे हाथ आते हैं। जो तुम्हारे भीतर हो रहा है वही बाहर झलकता है। तुम बाहर की व्याख्या तो भीतर से ही करोगे न! व्याख्या तो भीतर से आयेगी । व्याख्या तो द्रष्टा से आयेगी । दृश्य में तुम्हें जो दिखाई पड़ रहा है वह भी द्रष्टा की ही छाया है। एक कवि इस बगीचे में आ जाये और एक संगीतज्ञ इस बगीचे में आ जाये और एक चित्रकार इस बगीचे में आ जाये और दूकानदार इस बगीचे में आ जाये और एक लकड़हारा इस बगीचे में आ जाये; सभी एक ही बगीचे में दिखाई पड़ते हैं लेकिन एक ही बगीचे में होंगे नहीं। लकड़हारा सोचता होगा कौन-कौन से वृक्ष काट डाले जायें। कौन-सी लकड़ी बिक सकेगी। कौन-सी लकड़ी फर्नीचर बन सकेगी, कौन-सी लकड़ी जलाऊ हो सकेगी। शायद दूकानदार को वृक्ष दिखाई ही न पड़ें। या इतना ही दिखाई पड़े कि इनके फल बिक जायें तो कितने दाम हाथ आ सकेंगे। दूकानदार रुपये ही गिनते रहे । कवि को कुछ और दिखाई पड़ेगा। फूल दिखाई पड़ेंगे, फूलों में छाई हुई आभा दिखाई पड़ेगी । कवि के भीतर, जैसे बाहर फूल खिले हैं वैसे भीतर गीत फूटने लगेंगे। चित्रकार को रंगों का दर्शन होगा। उसे ऐसे रंग दिखाई पड़ेंगे जो तुम्हें साधारणतः दिखाई नहीं पड़ते। तुम तो 'जब देखते हो, तो सभी वृक्ष हरे मालूम होते हैं। चित्रकार जब देखता है तो एक-एक वृक्ष अलग-अलग ढंग से हरा मालूम होता है। हरे में भी कितने भेद हैं। हरे में भी कितने हरेपन छिपे हैं । हरे में भी कितने ढंग हैं। सब हरा हरा नहीं है, हरे और हरे में बड़ा फर्क है। वह तो चित्रकार को दिखाई पड़ेगा। तुम्हारे भीतर है उसकी छाया तुम्हें बाहर दिखाई पड़ती है। और अगर कोई एक संत आ जाये, बिया आ जाये उस बगीचे में तो फूल के सौंदर्य को देखकर उसकी आंखें बंद हो जायेंगी। फूल का सौंदर्य उसकी आंखों को झपका देगा, क्योंकि फूल के सौंदर्य से उसे परमात्मा के सौंदर्य की याद आ जायेगी। बाहर का सौंदर्य उसे भीतर फेंक देगा। वह आंख बंद कर लेगी। बाहर का फूल तो भूल जायेगा, निमित्त हो गया, भीतर का फूल दिखाई पड़ने लगेगा। बाहर के गीत सुनकर राबिया किसी अंतर्यात्रा पर निकल जायेगी। बाहर का गीत तो बहुत दूर रह जायेगा। दृश्य, हर दृश्य द्रष्टा की खबर लायेगा - लाता ही है, हम अंधे हैं। भीतर की तरफ अंधे हैं इसलिए हम वस्तुओं में उलझे रह जाते हैं । पहला सूत्र आज का है : क्वात्मनो दर्शनं तस्य यद्दृष्टमवलंबते । उसको आत्मा का दर्शन कहां, कैसे - असंभव है - जो दृश्य का अवलंबन करता है। जो दृश्य के पीछे भागा चल रहा है, वह अपने से दूर निकलता जायेगा। जैसे-जैसे दृश्य के पीछे भागेगा वैसे-वैसे अपने केंद्र से च्युत हो जायेगा । दृश्य तो मिलेगा नहीं, क्योंकि दृश्य तो मृग मरीचिका है। वह जो झील में दिखाई पड़ता है चांद, तुम अगर डुबकी लगा लिये झील में चांद को पकड़ने को तो दृश्य द्रष्टा में छलांग 161
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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