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________________ समझो। हम जो अरथ समझे इसका वह फूंकके बाती जली समझे जो अपने अहंकार की बाती को फूंक देगा वही समझेगा। तुमने अगर अपने अहंकार से समझना चाहा तो तुम्हें चोट लगेगी। हम जो अरथ समझे इसका वह फूंकके बाती जली समझे अहंकार को जब बुझा दोगे फूंककर, तब तुम्हारे भीतर जो ज्योति जलेगी वही इसे समझेगी। बुद्धि इसे पगली समझे पर मन रस की बदली समझे बुद्धि से मत सुनना, हृदय से सुनना। विचार और विवाद से मत सुनना। तर्क और सिद्धांत से मत सुनना, प्रेम और लगाव से सुनना। ...मन रस की बदली समझे पंछी इसे असली समझे पर पिंजरा इसे नकली समझे अगर तुम अपने पिंजरे से बहुत-बहुत मोहग्रस्त हो, अगर तुमने अपने कारागृह को अपना मंदिर समझा है तो फिर तुम मुझसे नाराज हो जाओगे। तुम्हें बड़ी चोट लगेगी। पंछी इसे असली समझे पर पिंजरा इसे नकली समझे लेकिन अगर तुमने मेरी बात सुनी और पिंजरे से अपना मोह न बांधा, और अपने पंछी को पहचाना जो पीछे छिपा है, पिंजरे के भीतर छिपा है, तो मेरी बातें तुम्हारे लिए फिर से पंख देनेवाली हो जायेंगी; आकाश बन जायेंगी। तुम्हारा पंछी फिर उड़ सकता है खुले आकाश में। तुम पर निर्भर है। आज इतना ही। 156 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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