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________________ चार-पांच वर्षों से सोच रहे हो! और कहते हो, कभी-कभी संन्यास लेने की इच्छा बड़ी प्रगाढ़ भी हो जाती है। तो जब इच्छा प्रगाढ़ भी हो जाती है तब भी चूक-चूक जाते हो? तो जरा उनकी सोचो, जिनकी इच्छा प्रगाढ़ भी नहीं है। अब और क्या करोगे? अब और इससे ज्यादा क्या होगा? इच्छा प्रगाढ़ हो गई, अब इससे ज्यादा और क्या होगा? अगर इच्छा के प्रगाढ़ होने पर भी मन जीत-जीत जाता है तब तो तुम्हारी मुक्ति की कोई संभावना नहीं। अब और ज्यादा क्या होगा? और अब तो यहां आ भी गये हो यह निर्णय करके कि संन्यास ले लेना है। अब कहते हो कि यहां आ भी गया हूं इस बार तो संन्यास लेने पर जब से घर से निकला हूं, शरीर कंपता है और मन में कुछ घबड़ाहट अनभव होती है। स्वाभाविक। बिलकुल स्वाभाविक। ऐसा न होता तो कुछ गलत होता। इससे चिंता मत बनाओ। शरीर कंपता है, अनजानी बात होने जा रही है। पता नहीं क्या होगा फिर? परिचित-प्रियजन कैसे लेंगे? वही गांव, वे ही लोग! स्वीकार करेंगे, अस्वीकार करेंगे? लोग हंसेंगे कि पागल समझेंगे? लोग विरोध करेंगे, अपमान करेंगे? पत्नी कैसे लेगी? बच्चे कैसे लेंगे? सारी चिंतायें उठती हैं। नये पर जाते समय चिंतायें स्वाभाविक हैं। पुराना तो परिचित है, उस पर तुम सदा चले हो। उस पर तो तुम रेलगाड़ी के डब्बे की तरह पटरी पर दौड़ते रहे हो यहां से वहां। आज तुम लीक से उतरकर चल रहे, लकीर की फकीरी छोड़ रहे। चिंता उठती है। राजपथ से हटकर पगडंडी पर जा रहे। राजपथ पर भीड़ है। आगे भी, पीछे भी लोग हैं, किनारे-बगल में भी लोग हैं। सब तरफ भीड़ जा रही है; वहां भरोसा है। इतने लोग गलत थोड़े ही जा रहे होंगे। . और मजा यह है कि सभी यही सोच रहे हैं कि इतने लोग गलत थोड़े ही जा रहे होंगे। तुम जिनकी वजह से जा रहे हो वे तुम्हारी वजह से जा रहे हैं। तुम बगलवाले की वजह से चल रहे हो, बगलवाला तुम्हारी वजह से चल रहा है। भीड़ एक-दूसरे को थामे है, और चलती जाती है। जो पीछे हैं वे सोचते हैं, आगेवाले जानते होंगे। जो आगे हैं वे सोचते हैं, इतने लोग पीछे आ रहे हैं, न जानते होते तो आते क्यों? नेता सोचता है अनुयायी जानते होंगे; नहीं तो क्यों आते? अनुयायी सोचते हैं कि नेता जानता होगा, नहीं तो आगे क्यों चलता? ऐसे एक-दूसरे पर निर्भर भीड़ सरकती जा रही है। कहां जा रही है? क्यों जा रही है? कुछ भी पता नहीं है। . ___आज तुम अगर संन्यास लेते हो तो उतरे भीड़ से। भीड़ छोड़ी। भेड़ होना छोड़ा। चले पगडंडी पर। अब न कोई आगे है, अब न कोई पीछे। अब तुम अकेले हो। अकेले में भय लगता। रात होगी, अंधेरी होगी, भटकोगे, क्या होगा? पहुंचोगे, क्या पक्का? __ इससे कंपन होता। कंपन स्वाभाविक है। कंपन इस बात का लक्षण है कि जीवन में पहली बार नयी दिशा में कदम उठाया है तो कदम थर्राता है। और मन कहता है, यह तो कभी किया न था। यह क्या कर रहे हो? मन की...ध्यान रखना, मन बड़ा रूढ़िवादी है : आर्थोडाक्स। वह वही करना चाहता है, जो कल भी किया था, परसों भी किया था, पहले भी किया था। मन तो यंत्र है। तुम यंत्र से नया काम करने को कहो तो यंत्र कहेगा, यह क्या कहते हो? मन तो कुशल है उसी को करने में, जो सदा करता रहा अपनी बानी प्रेम की बानी 1351 135
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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