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________________ उन अभागों के लिए क्या कहें! वे कभी आत्मा को नहीं जान पाते। तत्राभ्यासपरा जनाः। जिनके जीवन में अभ्यास की बीमारी पकड़ गई। जो अभ्यास के रोग से पीड़ित हो गये हैं; जो सदा-सदा अभ्यास ही करते रहते हैं, वे झूठे ही होते चले जाते हैं। मुखौटे ही रह जाते हैं उनके पास। प्रत्यञ्चित भौहों के आगे समझौते, केवल समझौते भीतर चुभन सुई की, बाहर संधिपत्र पर पढ़ती मुसकानें जिस पर मेरे हस्ताक्षर हैं कैसे हैं, ईश्वर ही जाने आंधी से आतंकित चेहरे गर्दखोर रंगीन मुखौटे जी होता आकाश-कुसुम को एक बार बाहों में भर लें जी होता एकांत क्षणों में अपने को संबोधित कर लें लेकिन भीड़-भरी गलियां हैं कागल के फूलों के न्यौते झेल रहा हूं शोभायात्रा में चलते हाथी का जीवन जिसके माथे मोती की झालर लेकिन अंकुश का शासन अधजल घट-से छलक रहे हैं पीठ चढ़े जो सजे कठौते समझौते, केवल समझौते प्रत्यञ्चित भौहों के आगे समझौते, केवल समझौते अभ्यास तुम्हें झूठ कर जाता है। अभ्यास समझौता है पर से; स्व के विपरीत। अभ्यास का अर्थ है, भीतर अगर आंसू हैं तो ओठों पर मुसकान। अभ्यास का अर्थ है, भीतर कुछ, बाहर कुछ। धीरे-धीरे भीतर और बाहर दो अलग दुनिया हो जाती हैं। जानो और जागो! 117
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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