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________________ करवा दी है कि मैं जानता हूं, और जानता नहीं। मूढ़ का अर्थ है, अहंकारी। अहंकार की शराब पीये बैठा है। मूढ़ का अर्थ है, सोया-सोया; तंद्रिल। चलता है लेकिन होशपूर्वक नहीं। बोलता है लेकिन होशपूर्वक नहीं। सुनता है लेकिन होश पूर्वक नहीं। पढ़ता है लेकिन होशपूर्वक नहीं। __तुमने कभी खयाल किया? तुम कुछ पढ़ रहे हो; पूरा पेज पढ़ गये तब अचानक खयाल आता है कि अरे! पढ़ तो गये, लेकिन एक शब्द भी पकड़ में नहीं आया। पढ़ा तुमने जरूर, आंख शब्दों पर चलती थी। एक-एक शब्द पढ़ लिया। विराम, पूर्णविराम, सब पढ़ लिये। कुछ शब्द छूटा नहीं। लेकिन पेज के अंत पर आकर अचानक तुम्हें खयाल आया, अरे! पढ़ तो लिया लेकिन याद कुछ भी नहीं आता। . क्या हुआ? इस घड़ी तुम मूढ़ थे। मूढ़ता का अर्थ समझा रहा हूं। इस घड़ी तुमने मूढ़ता को ग्रहण कर लिया था। तुम होश में नहीं थे। तुम बेहोश थे। पढ़ भी गये, आंख ने भी काम किया, बुद्धि ने भी काम किया, लेकिन आत्मा के तल पर गहरी मूर्छा थी। लगा, कोई देखनेवाला होता तो देखता कि बड़े तल्लीनता से पढ़ रहे हो। लेकिन तुम जानते हो कि तल्लीनता तो दूर, जरा-सा हाथ नहीं लगा है। सब ऐसे बह गया। फिर से पढ़ोगे, तब शायद थोड़ा-बहुत हाथ लगे। तुमने कभी खयाल किया? चौबीस घंटे गुजर जाते हैं-सुबह होती, सांझ होती, यूं ही उम्र तमाम होती। तुम कभी ऐसा पाते हो कि कभी थोड़ी-बहुत देर के लिए जागते हो कि नहीं? ऐसे सोये-सोये ही चलते रहते हो। बोल भी देते हो, झगड़ भी लेते हो, प्रेम भी कर लेते हो, शादी-विवाह भी कर लेते हो, धन भी कमा लेते हो। ऐसे सब चलता जाता है। लेकिन कभी तुमने होश से सोचा, यही तुम करना चाहते थे? यही करने को तुम आये थे? यही था प्रयोजन? यही थी तुम्हारी नियति? तो तुम कंधे बिचकाओगे। तुम कहोगे, कुछ पक्का पता नहीं कि इसीलिए आये थे। किसलिए आये थे? कहां जाना था? कहां नहीं जाना था? धन कमाना था कि नहीं कमाना था? क्या कमाना था इसका भी कुछ पता नहीं है। क्या गंवाना था इसका भी कुछ पता नहीं है। क्या गंवा दिया, क्यों गंवा दिया, क्यों कमा लिया. इसका भी कछ हिसाब-किताब नहीं है। चल पड़े धक्के में। भीड जा रही थी. तुम भी चल पड़े। ___तुमने कभी देखा? भीड़ एक तरफ भागी जा रही हो तो तुम हजार काम छोड़कर भीड़ के साथ जाने लगते हो। अगर हिंदुओं की भीड़ मस्जिद पर हमला कर रही हो तो तुम भी चल पड़ते हो। तुम हजार काम छोड़ देते हो। तुम्हें कुछ खयाल ही नहीं रहता। जाकर मंदिर को तोड़ देते हो या मस्जिद को जला देते हो। और पीछे अगर कोई तुमसे पूछे कि क्या अकेले तुम ऐसा कर सकते थे? तो तुम कहोगे, अकेला तो मैं नहीं कर सकता था। वह तो भीड़ कर रही थी इसलिए मैं कर गजरा। वह तो भीड़ ने करवा लिया। तो तुम होश में हो या बेहोश हो? __ कोई आदमी गाली दे देता है, और तुम उबल गये; और तुम कुछ कर गुजरे। पीछे अदालत में लोग कहते हैं, हत्यारे भी कहते हैं कि हमने किया नहीं, हो गया। तुमने किया नहीं और हो गया? तो किसने किया? तो हत्यारे कहते हैं, हमारे बावजूद हो गया। होश न रहा। बेहोशी में हो गया। क्रोध आ गया। नशा छा गया क्रोध का और घटना घट गई। करना भी नहीं चाहते थे। उठा लिया पत्थर और 112 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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