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________________ तुम्हें चूमने का गुनाह कर ऐसा पुण्य कर गई माटी जनम-जनम के लिए हरी हो गई प्राण की बंजर घाटी पाप-पुण्य की बात न छेड़ो स्वर्ग-नरक की करो न चर्चा याद किसी की मन में हो तो मगहर वृंदावन लगता है। तुम्हारे जीवन में एक स्पर्श हुआ है, तुमने हिम्मत की है। एक किरण तुम्हें छू गई है। तुम्हारे जीवन में वृंदावन उतर रहा है। तुम पागल होने के लिए तैयार रहो और तुम स्वीकार कर लो कि मैं पागल हूं। इस स्वीकृति से तुम्हें भी लाभ होगा; तुम्हारे परिवार के लोगों को भी लाभ होगा। ___तुम समझाने को कोशिश मत करना कि मैं सूझदार हूं। समझदार तुम हो ही नहीं। समझदार होते तो संन्यासी बनते? समझदार दुकानें चलाते, धन कमाते, दिल्ली जाते, पदों पर होते, राजनीति करते। समझदार संन्यासी बनते? यह तो थोड़े-से पागलों का काम है। लेकिन तुम सौभाग्यशाली हो। समझदार अभागे हैं; क्योंकि एक दिन पाते हैं दुकान तो खूब चली, लेकिन खुद चुक गये; एक दिन पाते हैं पद तो मिला, खुद खो गये; एक दिन पाते हैं धन तो जुड़ गया, लेकिन परम धन नहीं जुड़ पाया। एक दिन मौत आती है, दिल्ली छिन जाती है; मरघट ही हाथ लगता है। खाली हाथ आते, खाली हाथ जाते-क्या उनको समझदार कहो! लेकिन संख्या उनकी ज्यादा है। और निश्चित, संख्या जिनकी ज्यादा है वे अपने को समझदार कहेंगे; उनके पास संख्या का बल है। बुद्ध भी नासमझ समझे गये। इसलिए तो अब भी हम बुद्ध के नाम पर एक गाली चलाते हैं : बुद्ध! बुद्ध को लोगों ने बुद्ध समझा। यह बुद्ध शब्द बुद्ध से बना। लोगों ने कहाः 'यह भी क्या बात हुई! राजमहल छोड़ा, धन-द्वार, साम्राज्य, सुंदर पत्नी, सब छोड़ा। यह आदमी कैसा है!' फिर इस तरह और लोग भी जाने लगे तो लोग कहने लगेः 'ये बुद्ध हुए जा रहे हैं! ये भी बुद्ध हुए अब!' ऐसे तम्हें याद भी भल गई कि 'बद्ध' शब्द बद्ध से बना। ___लेकिन सदा से ऐसा हुआ है। जो सत्य की खोज में गया है, इस भीड़ में निश्चित ही उसे पागल समझा गया है। यह स्वाभाविक है। तुम भीड़ से सन्मान पाने की आशा मत करो। तुमने अगर यह चाहा कि भीड़ तुम्हें समझदार कहे तो एक बात खयाल में रख लो मेरे संन्यासी मत बनो, फिर तुम और तरह.के संन्यासी बनो! जैन संन्यासी बन जाओ, हिंदू संन्यासी बन जाओ! तो भीड़ तुम्हें कम पागल कहेगी; आदर भी देगी। क्योंकि जैन संन्यासी ने संन्यास तो कभी का छोड़ दिया है; वह तो भीड़ की पूजा लेने में ही तल्लीन है। उसने भीतर के अंतर्जगत को तो कभी का छोड़ दिया है; वह तो बाहर की औपचारिकता ही पूरी कर रहा है। ___ एक महिला मेरे पास आयी—जैन है। उसने कहाः 'मेरे पति को आप छुटकारा दें। आपने संन्यास दे दिया! अगर संन्यास ही लेना है तो वे जैन धर्म का संन्यास लें। यह कोई संन्यास एकाकी रमता जोगी 103.
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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