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________________ हर वीणा तेरी वीणा है मैं कोई छेडूं तान तझे ही बस आवाज लगाता हूं हर दर्पण तेरा दर्पण है! खोजो, थोड़ा गहरा खोजो। तुम अपनी पत्नी में ही विष पाओगे और अपनी पत्नी में ही परमात्मा भी, अमृत भी। तुम अपने ही भीतर विष भी पाओगे और अपने ही भीतर अमृत भी। विष ऊपरी पर्त है। शायद सुरक्षा है। शायद सुरक्षा के लिए है। अमृत भीतर छिपा है; अमृत को सुरक्षा चाहिए। विष सुरक्षा करता है। जैसे देखा न, गुलाब की झाड़ी पर एक फूल और कितने कांटे! कांटे रक्षा करते हैं। कांटे और फूल एक ही स्रोत से आते हैं। कांटों से ही उलझकर रोकर मत लौट आना; अन्यथा गुलाबों से अपरिचित रह गये तो बहुत पछताओगे। कांटे हैं जरूर, निश्चित; मगर जहां कांटे हैं, वहीं छिपे गुलाब के फल भी हैं। और कांटे केवल रक्षक हैं। विष है जीवन में बहुत, पर रक्षक है। और जिस दिन तुम ऐसा देखोगे उसी दिन तुम आस्तिक हुए। जिस दिन विष भी रक्षक मालूम हुआ और कांटे भी फूल के मित्र, संगी-साथी मालूम हुए, उसी दिन तुम आस्तिक हुए। उस दिन तुमने परमात्मा को 'हां' कहा। आखिरी प्रश्नः जब कभी परिवार के लोग मेरे सामने मेरी शादी का प्रस्ताव रखते हैं तो अनायास मेरे मुंह से निकलता है कि मेरी शादी तो भगवान रजनीश से हो चुकी है; वे ही मेरे गुरु और सब कुछ हैं। इस पर परिवार | द समें समझाने का क्या है? पागल तो के लोग मुझ पर हंसते हैं और कहते हैं : 'क्या | २ तुम हो ही। लेकिन पागल होना शुभ तुम पागल हो जो ऐसी बातें बोलते हो?' इसे है, सौभाग्य है। सभी पागलपन बुरे नहीं होते समझाने की अनुकंपा करें! और सभी समझदारियां अच्छी नहीं होतीं। कुछ समझदारियां तो सिर्फ अभागे लोगों को ही मिलती हैं और कछ पागलपन केवल सौभाग्यशीलों को ही...। अगर तुम मेरे प्रेम में पागल हो तो समझना क्या है? तुम्हारे घर के लोग भी ठीक कहते हैं। और 100 अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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