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________________ सामने खड़ा हो जाये। तुमने भी मांगा ही मांगा है। प्रार्थना जो भी तुमने की हैं अब तक, सब मांगों से भरी थीं। तुमने देने के लिए कभी प्रार्थना की ? तुम कभी प्रभु के द्वार पर गये कि प्रभु, मैं अपने को देना चाहता हूं, तू ले ले, कृपा करना और मुझे स्वीकार कर ले ! तुम कुछ देने गये ? तुम सदा मांगने गये। तुम भिखमंगे की तरह गये । वह भिखमंगा बहुत घबड़ा गया। इंकार भी न कर सका क्योंकि राज्य पर संकट है और राजा अगर नाराज हो जाये...। तो उसने झोली में हाथ डाला। हाथ डालता है, मुट्ठी भरके दे सकता था, लेकिन मुट्ठी भरने की आदत ही न थी। मजबूरी में एक चावल का दाना निकालकर उसने डाला । डालना कुछ था, डालना पड़ रहा था - राजा सामने खड़ा था। एक चावल का दाना ! । बात आई-गई हो गई। राजा ने झोली बंद की, बैठा रथ पर और चला गया। धूल उड़ती रह गई। तब उसे होश आया कि अरे, मैं तो मांगना ही भूल गया; यह तो उलटा ही हो गया ! बड़ा दुखी! दिन भर में खूब भीख मिली, क्योंकि जो देता है वह खूब पाता भी है। हालांकि उसने बहुत कुछ न दिया था, मगर फिर भी दिया तो था ही । भिखमंगे के लिए उतना ही बहुत था । उस दिन खूब भीख मिली; लेकिन फिर भी वह उदास था। एक दाना तो कम था ! लाख मिल जाये, इससे क्या फर्क पड़ता है, एक दाना तो कम ही रहेगा ! और यह भी कैसा दुर्भाग्य का क्षण कि राजा के साथ मुलाकात हुई तो मांगने की जगह उलटा देना पड़ा। बड़ी पीड़ा थी। बड़े बोझ से भरा था । झोला बहुत भर गया था उसका, लेकिन वह खुशी न थी । वह घर लौटा। पत्नी दौड़ी। ऐसा झोला कभी भरकर न आया था। पत्नी बड़ी खुश हो गई। और उसने कहा : 'धन्यभाग, आज बहुत कुछ मिला है।' उसने कहा: 'छोड़ पागल, तुझे पता नहीं आज क्या गंवाया है ! यह कुछ भी नहीं है । एक तो अपने पास का एक दाना गया और इतना ही नहीं, जो मिलना था वह तो मिल ही न पाया। राजा के साथ मिलन हो गया और कुछ मांग न पाया। आज जैसा दुर्भाग्य का क्षण मेरे जीवन में कभी था ही नहीं।' बड़ी उदासी से उसने झोली उलटायी और तब वह छाती पीटकर रोने लगा, क्योंकि उस झोली में उसने देखा कि एक चावल का दाना सोने का हो गया था। तब वह छाती पीटकर रोने लगा कि मैंने सब क्यों न दे दिया, तो सब सोने का हो जाता । देने से सोने का होता है। मांगने से तो सोना भी मिट्टी हो जाता है । देने से मिट्टी भी सोना हो जाती है । इसलिए तो शास्त्र दान की इतनी महिमा गाते हैं । अगर प्यास है 'देने की तैयारी करो; और छोटी-मोटी चीजें देने से न चलेगा, स्वयं को देना पड़ेगा। क्योंकि छोटी-मोटी चीजें तो मौत तुमसे छीन लेगी, उनको देकर तुम कोई परमात्मा पर आभार नहीं कर रहे हो । जो मौत तुमसे न छीन सकेगी वही देने की तैयारी हो तो परमात्मा अभी मिल जाये, इसी क्षण मिल जाये । वह द्वार पर खड़ा है, दस्तक भी दे रहा है; लेकिन तुम डरते हो कि कहीं कोई भिखमंगा न खड़ा हो ! तुम अपने बेटे को भेज देते हो कि कह दो कि पिता जी बाहर गये हैं । तुम कहते हो कि प्यास है। मैं मान नहीं सकता। क्योंकि जिसको भी कभी प्यास पैदा हुई, परमात्मा प्यास के पीछे-पीछे चला आया है। 90 ओ गीले नयनोंवाली ऐसे आज नयन जो नजर मिलाये तेरी मूरत बन जाये अष्टावक्र: महागीता भाग-5
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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