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________________ तुम्हीं थे मेरी रोशनी तुम्हीं ने मुझको दी नजर बिना तुम्हारे जिंदगी शमा है एक मजार की! तुम छोड़ दो अपने को परमात्मा के हाथों में। निश्चित कुछ बिखरेगा। जो बिखरेगा वह बिखरने ही के लिए है, बिखरना ही चाहिए। वह बिखरे, यही शुभ है। और कुछ सम्हलेगा। जो सम्हलना चाहिए, वही सम्हलेगा। अभी गलत तो सम्हला है, सही सोया है। गलत को जाने दो, ताकि सही जाग सके। और सही तभी जागता है जब गलत हट जाये। असार को असार की तरह देख लेने में सार का जन्म है। असत्य को असत्य की तरह पहचान लेने में सत्य की पहली किरण है। तीसरा प्रश्नः प्रभु को पाने का मार्ग क्या है? प्यास तो है, पर पथ नहीं मिलता। पथ-प्रदर्शन करें! प्या स हो नहीं सकती। कहते हो प्यास है; | है नहीं! क्योंकि प्यास ही तो पथ है। प्यास हो तो पथं मिल ही गया। प्यास से अलग पथ कहां! ये पथ इत्यादि की बातें तो प्यास की कमी के कारण ही पैदा होती हैं। प्यास नहीं तो हम पूछते हैं : पथ कहां है? प्यास हो, ज्वलंत प्यास हो, रोआं-रोआं जलता हो, आग लगी हो विरह की, लपटें उठी हों खोज की-कोई पथ नहीं पूछता। प्यास पथ बना देती है। ऐसा समझो, घर में आग लग गई हो, तब तुम थोड़े ही पूछते हो कि द्वार कहां, मुख्य द्वार कहां, कहां से निकलूं, कहां से न निकलूं? खिड़की से कूद जाते हो। फिर तुम यह थोड़े ही देखते हो कि यह मुख्य द्वार नहीं है-जब घर में आग लगी हो–यह खिड़की से कूद रहा हूं, यह शिष्टाचार के विपरीत है! तुम फिर नक्शा थोड़े ही पूछते हो कि नक्शा कहां है? तुम फिर मार्गदर्शन थोड़े ही चाहते हो। तुम फिर रुकते थोड़े ही हो किसी से पूछने को। घर में आग लगी हो तो तुम्हारे प्राण ऐसे आकुल हो जाते हैं निकलने को बाहर कि तुम राह खोज लेते हो। तुम्हारी आकुलता राह बन जाती है। एकाकी रमता जोगी 87
SR No.032113
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages436
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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