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सामाजिक हैं; भीड़ के पीछे हैं। तो भीड़ ने राम का खूब आदर किया। राम ने भीड़ का खूब आदर किया। राम में कोई क्रांति नहीं है। राम क्रांतिविरोधी हैं। और स्वभावतः जब कोई व्यक्ति अपने को समाज के लिए बलिदान कर देता है तो समाज उसके व्यक्तित्व को खूब ऊपर उठाता है। तुम्हारे लिए जो मर जाये, स्वभावतः तुम कहोगे शहीद है। तुम भरोसा दिलाते हो लोगों को कि 'अगर तुम समाज के लिए मरे तो स्वर्ग निश्चित है। शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले! तुम घबड़ाओ मत, मर जाओ, हम मेला चलाते रहेंगे ! कुंभ मेला भर देंगे तुम्हारी चिता पर ।' सदियों सदियों तक तुम उन्हें
लेकिन कृष्ण कोई शहीद नहीं हैं। और कृष्ण ने तुम्हारे लिए कोई कुर्बानी नहीं की है। तुम उनको पूजते हो जो तुम्हारे लिए मरने को राजी हैं। कृष्ण जीये हैं। कृष्ण जीये हैं। जैसा जीवन सहज भाव से प्रगटा है; जो हुआ है होने दिया है। तुम्हारी दो कौड़ी की धारणाओं का कोई मूल्य नहीं माना है । तुम्हारी सब धारणायें तोड़ दी हैं । तुम्हारी धारणा तुम्हारी है, कृष्ण उसके लिए झुके नहीं । तुम्हारी लकीर पर चलने के लिए कृष्ण राजी नहीं हुए। अमर्याद हैं। उनकी लीला व्यक्ति की लीला नहीं है; उनकी लीला प्रभु-लीला है; वह रासलीला है।
दो ही बातें हैं- या तो कृष्ण लंपट हैं, या तो कृष्ण अपराधी हैं; और या कृष्ण स्वयं परमात्मा हैं। दो के बीच में तुम कहीं नहीं रख सकते उनको। राम बीच में हैं। निश्चित ही बुरे तो हैं ही नहीं । लेकिन तुम ठीक परमात्मा की जगह भी नहीं रख सकते। इसलिए हिंदुओं ने उन्हें कभी पूर्ण अवतार नहीं कहा, कह भी नहीं सकते; क्योंकि पूर्ण अवतार हमारी धारणाओं को मान कर चलेगा? पूर्ण की कोई सीमा होती है ? पूर्ण पर कोई हम अपना ढांचा बिठा सकेंगे ? पूर्ण तो बहेगा बाढ़ की तरह, हमें तोड़ देगा | पूर्ण कोई नहर थोड़े ही है - बाढ़ आई गंगा है !
राम तो नहर हैं- सरकारी नहर ! जितना पानी चाहो, बहाओ और जहां बहाना चाहो वहां बहाओ । वे आज्ञा के अनुसार चलते हैं। सरकार भी प्रसन्न, समाज भी प्रसन्न ! व्यवस्था, स्थिति-स्थापक हैं। जो व्यवस्थित है, जिसके हाथ में स्वार्थ है, न्यस्त स्वार्थ है, उसके पक्ष में हैं। वह कोई भी हो.
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तो राम की तो अस्मिता है। राम अहंकार के पार नहीं हैं। क्योंकि अहंकार के अगर पार हों तो कौन मान कर चले, किसकी मान कर चले! अहंकार के जो पार हो उसका कैसा चरित्र होगा ? बिंदु ही नहीं, केंद्र ही नहीं, तो उसके आसपास चरित्र का चाक कैसे चलाओगे? उसकी कील ही टूट गई तो चाक कैसे चलेगा ?
कृष्ण अहंकार - शून्य हैं। अपूर्व हैं ! बहुत पार के हैं ! बहुत दूर हैं ! तुम जब तक अपनी क्षुद्र धारणाओं से मुक्त न होओ- चरित्र की, शुभ की, अशुभ की, द्वंद्व की, द्वैत की; जब तक तुम्हारी तार्किक धारणा न छूटे; जब तक तुम जीवन जैसा है उसको वैसा ही न देखने को समर्थ हो जाओ-तब तक कृष्ण तुम्हारी पकड़ में न आयेंगे। इसलिए कृष्ण की लीला को रासलीला कहा है। वह परमात्मा. की लीला है। वह अबूझ है, रहस्यमय है ।
राम बिलकुल बूझ के भीतर हैं। राम बिलकुल गणित और तर्क की तरह साफ-सुथरे हैं। तुम इंच भर गलत न पाओगे और इंच भर बेबूझ न पाओगे। राम की कथा बहुत साफ कथा है— स्वच्छ, धुआं बिलकुल नहीं है। कृष्ण की कथा बड़ी रहस्यपूर्ण है, सब उलझा - उलझा है। कृष्ण की कथा तो जैसे
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4