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________________ पहला प्रश्न : क्राइस्ट का प्रेम, बुद्ध की करुणा, अष्टावक्र का साक्षी और आपकी उत्सवलीला, इन चारों में क्या फर्क है? क्या ये अलग-अलग चार मार्ग हैं? लग-अलग मार्ग नहीं, वरन एक ही घटना की चार सीढ़ियां हैं, एक ही द्वार की चार सीढ़ियां हैं। क्राइस्ट ने जिसे प्रेम कहा है वह बुद्ध की ही करुणा है, थोड़े से भेद के साथ। वह बुद्ध की करुणा काही पहला चरण है। क्राइस्ट का प्रेम ऐसा है जिसका तीर दूसरे की तरफ है। कोई दीन है, कोई दरिद्र है, कोई अंधा है, कोई भूखा है, कोई प्यासा है, तो क्राइस्ट का प्रेम बन जाता है सेवा। दूसरे की सेवा . से परमात्मा तक जाने का मार्ग है; क्योंकि दूसरे में जो पीड़ित हो रहा है वह प्रभु है। लेकिन ध्यान दूसरे पर है। इसलिए ईसाइयत सेवा का मार्ग बन गई। अ बुद्ध की करुणा एक सीढ़ी और ऊपर है। इसमें दूसरे पर ध्यान नहीं है । बुद्ध की करुणा में सेवा नहीं है; करुणा की भाव- दशा है। यह दूसरे की तरफ तीर नहीं है, यह अपनी तरफ तीर है। कोई न भी हो, एकांत में भी बुद्ध बैठे हैं, तो भी करुणा है। फर्क समझ लेना । राह से तुम गुजरे। एक अंधा आदमी भीख मांग रहा है तो तुमने जो दो पैसे दिए वह करुणा नहीं है; सेवा है। क्षण भर पहले, जब तक तुमने अंधे भिखारी को नहीं देखा था तब तक तुम्हारे मन में कोई करुणा का उदय न हुआ था । अंधे भिखारी को देख कर हुआ, यह तुम्हारी अवस्था नहीं है; सांयोगिक घटना है। अगर अंधा भिखारी न मिलता तो सेवा का भाव पैदा न होता, सहानुभूति पैदा न होती । यह प्रेम दूसरे पर निर्भर है; यह दया है। बुद्ध ने करुणा उस दशा को कहा है जब कोई हो न हो, तुम्हारे भीतर करुणा की तरंग उठती ही रहती है। अंधे को देख कर तो उठती ही है, आंख वाले को देख कर भी उठती है; बीमार को देख कर तो उठती ही है, स्वस्थ को देख कर भी उठती है; गरीब को देख कर तो उठती ही है, अमीर को देख कर भी उठती है । इस फर्क को खयाल में ले लेना। अमीर को देख कर दया नहीं उठती; स्वस्थ आदमी को देख कर दया उठने का क्या कारण है ? शायद ईर्ष्या उठती है, जलन उठती है, द्वेष उठता है । अंधे को देख कर दया उठती है । बुद्ध कहते हैं, करुणा होनी चाहिए चैतन्य की दशा; इसका दूसरे से संबंध न हो । और इस भेद को समझना । यही भेद पूरब और पश्चिम का भेद बन गया । 1 ईसाई को समझ में नहीं आता कि पूरब के धर्म सेवा - उन्मुख क्यों नहीं हैं ? जैसा ईसा ने अंधों को •
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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