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________________ हम चोरी करने लगें? उधारी चढ़ गई सिर पर, चुकती नहीं। अब तो एक ही उपाय बचा है। अगर तुमने यह जारी रखा तो हम चोरी करने लगेंगे। - कबीर तो खिल गये जैसे कमल खिल जाये। कबीर ने कहा अरे पागल तो पहले क्यों न सोचा! इतने दिन खुद परेशान, तू परेशान, तेरी मां परेशान! और इतने दिन मुझे भी परेशान कर रहे हो! तो पहले क्यों न सोचा? - कमाल तो चौंका। उसने कहाः हद हो गई! इसका क्या अर्थ हुआ! क्या चोरी के लिए भी स्वीकृति! लेकिन कमाल भी कमाल था। उसने कहा ः 'तो ठीक। तो आज चोरी करने जायेंगे। लेकिन आपको मेरे साथ चलना पड़ेगा।' उसने सोचा कि यह मजाक ही होगी; जब बात मुद्दे की आयेगी और चोरी करने की बात उठेगी तो शायद इनकार कर जायेंगे। लेकिन कबीर ने कहाः 'हां-हां, चलूंगा।' कमाल भी कमाल ही था! रात आ गया उठ कर आधी रात, कहा कि चलो। अभी भी सोचता था कि आखिरी वक्त में वे नट जायेंगे कि चोरी और कबीर! बात कुछ मेल खाती नहीं। लेकिन कबीर उठ गये, हाथ-मुंह धो कर चल पड़े। कहने लगेः 'कहां चलना है, चल।' मगर कमाल भी कमाल ही था। उसने जाकर सेंध लगा दी एक मकान में। उसने कहा, हो सकता है अब रुक जायें। वह भी आखिरी दम तक देखना चाहता था कि मामला कहां तक जाता है। सेंध भी खुद गई। उसने कहाः 'तो मैं अंदर चला जाऊं?' कबीर ने कहा: 'अब इधर आये किसलिए! तो पागल, आधी रात नींद वैसे ही खराब की! तो जल्दी कर, क्योंकि ब्रह्म-मुहूर्त हुआ जाता है और थोड़ी देर में भजन करने वाले लोग आते होंगे!'' __बड़ी अनूठी कहानी है। अनूठी, क्योंकि उसके फिर मुकाबले में कोई कहानी पूरे संत-साहित्य में नहीं है। तो कमाल भीतर चला गया। कमाल भी कमाल ही था। उसने कहा कि ठीक है; शायद जब मैं ले आऊंगा धन तब वे इनकार कर देंगे। वह भी आखिरी दम तक देख लेना चाहता था। बाप का ही बेटा था। कबीर का ही बेटा था। कहा कि तुम अगर आखिरी दम तक कस रहे हो तो मैं भी...। वह ले आया खींच कर अशर्फियों से भरी एक बोरी। बोरी बाहर निकाल रहा था, तभी कबीर ने कहा कि 'सुन, घर के लोगों को जगा दिया कि नहीं, बता दिया कि नहीं?' तो उसने कहा : 'क्या मतलब?' कहाः 'घर के लोगों को बता तो दे भाई कम से कम। सुबह भटकेंगे, यहां-वहां खोजेंगे, उनको पता तो होना चाहिए, कौन ले गया! शोरगुल कर दे!' तो कमाल तो कमाल ही था, उसने शोरगुल कर दिया। और जब कबीर कह रहे हैं तो कर दो शोरगुल! शोरगुल कर दिया तो पकड़ लिया गया। सेंध में से निकल रहा था, घर के लोगों ने पीछे से पैर पकड़ लिए। तो उसने पूछा कबीर सेः 'अब क्या करना? लोगों ने पैर पकड़ लिए हैं।' तो कबीर ने कहाः 'पकड़े रहने दे पैर। पैर का करना भी क्या है! सिर मैं तेरा लिए जाता हूं।' कहते हैं सिर काट लिया, सिर ले गये। घर के लोगों ने पीछे खींच लिया कमाल को। बिना सिर का था तो पहचानना मुश्किल हो गया कि कौन है, क्या है। लेकिन कुछ रंग-ढंग से लगता था कि अपूर्व व्यक्ति है! गंध कुछ ऐसी थी, हाथ-पैर का सौंदर्य ऐसा था, शरीर का अनुपात ऐसा था, कोमलता ऐसी थी, प्रसाद ऐसा था! बिना सिर के भी था तो भी! किसी ने कहा कि हमें तो ऐसा लगता है कि कबीर का बेटा कमाल है, तो इसे बाहर खंभे पर लटका दें, पहचान हो जायेगी। क्योंकि थोड़ी ही देर में कबीर की मंडली निकलेगी भजन करते, कोई साक्षी आया, दुख गया 49
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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