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________________ वन में, कोई भेद नहीं, तुम ऐसे व्यक्ति को भीड़ में भी अकेला पाओगे । और तुम ऐसे व्यक्ति को जंगल में बैठा हुआ पाओगे तो भीड़ से दूर न पाओगे, विपरीत न पाओगे । दुश्मन न पाओगे। ऐसा व्यक्ति भीड़ से डर कर नहीं चला गया है जंगल में। ऐसे व्यक्ति को तुम जंगल से भीड़ में ले आओ कि भीड़ से जंगल में ले जाओ, कोई फर्क न पड़ेगा। ऐसा व्यक्ति अब अपने भीतर ठहर गया है। कोई चीज कंपाती नहीं । स्वराज्ये भैक्ष्यवृत्ता...। चाहे राज्य हो चाहे भिक्षा । लाभालाभे...। चाहे लाभ हो चाहे हानि । जने वा वने... । चाहे जंगल चाहे भीड़ । निर्विकल्पस्वभावस्य योगिनः । योगी तो निर्विकल्प बना रहता है। उसका कोई चुनाव नहीं है । वह ऐसा भी नहीं कहता कि ऐसा ही हो । हो जाये तो ठीक, न हो जाये तो ठीक। ऐसा हो तो ठीक, अन्यथा हो तो ठीक। उसने सारी प्रतिक्रिया छोड़ दी। वह अब वक्तव्य ही नहीं देता। वह जो घटता है, उसे घट जाने देता है। उसकी अब कोई शिकायत नहीं है । सब उसे स्वीकार है । तथाता । सब उसे अंगीकार है। ‘यह किया है और यह अनकिया है, इस प्रकार के द्वंद्व से मुक्त योगी के लिए कहां धर्म है, कहां काम है, कहां अर्थ, कहां विवेक ?' क्व धर्मः क्व च वा कामः क्व चार्थः क्व विवेकिता । इदं कृतमिदं नेति द्वंद्वैर्मुक्तस्य योगिनः । । हम तो इसी में पड़े रहते हैं कि क्या किया और क्या नहीं किया; क्या कर पाये और क्या नहीं कर पाये - हिसाब लगाते रहते हैं। गणित बिठाते रहते हैं: इतना कमा लिया, इतना नहीं कमा पाये; यह यह विजय कर ली, यह यह बात में हार गये; यहां यहां सफलता मिल गयी, यहां यहां असफल हो गये। चौबीस घंटे चिंतन चल रहा है- क्या किया, क्या नहीं किया ! मरते-मरते दम तक आदमी यही सोचता रहता है : क्या किया, क्या नहीं किया। एंड्रू कारनेगी, अमरीका का बहुत बड़ा करोड़पति, मर रहा था तो मरते वक्त उसने आंख खोली और कहा कि मुझे ठीक-ठीक बता दो कि मैं कितनी संपत्ति छोड़ कर मर रहा हूं। उसके सेक्रेटरी ने, जल्दी से भागा, फाइलों में से हिसाब लगाया, और ऐसा लगता है एंड्रू कारनेगी अटका रहा, उसकी सांस अटकी रही। जब उसने आ कर कह दिया कि कोई दस अरब रुपये छोड़ कर आप मर रहे हैं तो एंड्रू कारनेगी मरा, और वह भी बहुत सुख से नहीं। क्योंकि उसने कहा: 'मैंने तो सोचा था कम' कम सौ अरब रुपये कमा कर जाऊंगा। मैं एक हारा हुआ आदमी हूं।' दस अरब रुपये छोड़ कर मरने वाला आदमी भी सोचता है हारा हुआ हूं! ठीक है, अगर सौ अरब कमाने थे तो नब्बे अरब से हार हो गयी। हार भारी है। ऐसा लगता है दस अरब रुपये जैसे दस 326 अष्टावक्र: महागीता भाग-4
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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