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लेना-देना! लेकिन तूने धार तो खुद पकड़ी और मूठ मेरी तरफ की, बस बात हो गई। तू जा । तुझे आशीर्वाद है । तुझसे किसी की कभी कोई हानि न होगी, लाभ होगा।'
याद रखना, जब गुरु बोले तो शिष्य पर ध्यान रखना, , क्योंकि गुरु शिष्य के लिए बोलता है । ये दोनों घटनाएं शिष्यों के लिए हैं। रामकृष्ण के तल पर तो क्या अंतर पड़ता है! न मिट्टी मिट्टी है, न सोना सोना है। मिट्टी भी मिट्टी है, सोना भी मिट्टी है, मिट्टी भी सोना है । सब बराबर है। जहां एक रस का उदय हुआ, , जहां सब भेद खो गये, जहां एक ही परमात्मा दिखाई पड़ने लगा - फिर सभी उसके ही बनाये गये आभूषण हैं।
रामकृष्ण परम वीतराग दशा में हैं। विरागी नहीं हैं, न रागी हैं—दोनों के पार हैं। अष्टावक्र जिस सूत्र की बात कर रहे हैं - सरक्त - विरक्त के पार — वहीं हैं रामकृष्ण ।
चौथा प्रश्न: आप कहते हैं कि 'भागो मत, जागो ! साक्षी बनो!' लेकिन नौकरी के बीच रिश्वत से और रिश्तेदारों के बीच मांस-मदिरा से भागने का मन होता है। साक्षी बने बिना कोयले की खान में रहने से कालिख तो लगेगी ही। हमें समझाने की मेहरबानी करें !
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ब मैं तुमसे कहता हूं, साक्षी बनो, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं तुमसे कहता हूं कि तुम जैसे हो वैसे ही बने रहोगे । साक्षी में रूपांतरण है। मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं कि साक्षी बनोगे तो तुम बदलोगे नहीं। साक्षी तो बदलने का सूत्र है । तुम साक्षी बनोगे तो बदलाहट तो होने ही वाली है। लेकिन वह बदलाहट भगोड़े की न होगी, जागरूक व्यक्ति की होगी ।
समझो। तुम डर कर रिश्वत छोड़ दो, क्योंकि धर्मशास्त्र कहते हैं : 'नरक में सड़ोगे अगर रिश्वत ली। स्बर्ग के मजे न मिलेंगे अगर रिश्वत ली। चूकोगे अगर रिश्वत ली।' इस भय और लोभ के कारण तुम रिश्वत छोड़ देते हो— यह भगोड़ापन है । और जिस कारण से तुम रिश्वत छोड़ रहे हो, वह कुछ रिश्वत से बड़ा नहीं है। वह भी रिश्वत है। वह तुम स्वर्ग में जाने की रिश्वत दे रहे हो कि चलो, यहां छोड़े देते हैं, वहां प्रवेश दिलवा देना । तुम परमात्मा से कह रहे हो कि देखो तुम्हारे लिए यहां हमने इतना किया, तुम हमारा खयाल रखना। रिश्वत का और क्या मतलब है ?... कि हम तुम्हारी प्रार्थना करते हैं।
खुदी को मिटा, खुदा देखते हैं
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