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________________ पैदा हुए हो। मुक्त ही तुम जी रहे हो। मुक्त ही तुम मरोगे। बीच में तुमने बंधन का एक स्वप्न देखा । ऐसा समझो कि एक रात तुम सोये और तुमने सपना देखा कि तुम पकड़ लिये गये, तस्करी में पकड़ लिये गये, मीसा के अंतर्गत जेल में बंद कर दिये गये, हथकड़ियां डाल दी गयीं । अब तुम बड़े घबराने लगे रात नींद में कि अब क्या होगा, क्या नहीं होगा, कैसे बाहर निकलेंगे ? और सुबह नींद खुली तो तुम हंसने लगे। क्या तुम सुबह यह कहोगे कि रात जब तुम जेलखाने में पड़े थे, हथकड़ियां लग गयी थीं, तब तुम सच में ही जेलखाने में पड़ गये थे ? नहीं, सुबह तो तुम यह कहोगे : सच में तो मैं अपने बिस्तर पर आराम कर रहा था; झूठ में जेलखाने हो गया था। लेकिन बिस्तर पर तुम आराम कर रहे थे, तुम्हें याद नहीं रह गयी इस बात की । सपना बहुत भारी, हावी हो गया। तुम्हारी आंखें सपने से बोझिल हो गयीं। तुम सपने के द्वारा ग्रसित हो गये। सपने ने तुम्हें सम्मोहित कर लिया। सपना ऐसा था कि तुम भूल ही गये कि यह सपना है। सपने में जकड़ गये। रात भर तकलीफ पायी। लेकिन सुबह उठ कर तुम यह तो मानोगे कि तकलीफ हुई नहीं थी वस्तुतः, मानी हुई थी । मैं तुमसे कहता हूं : मुक्त तुम पैदा हुए हो, मुक्त तुम अभी हो, इस क्षण ! मैं अमुक्तों से नहीं बोल रहा हूं, मुक्तपुरुषों से बोल रहा हूं। क्योंकि अमुक्त कोई है ही नहीं। जिस दिन मैंने जाग कर देखा कि मैं मुक्त हूं, उसी दिन मेरे लिए सारा संसार मुक्त हो गया। तुम सपना देख रहे हो—वह तुम्हारा सपना है, मेरा सपना नहीं है। तुम अगर सपने में खोये हो – तुम खोये हो, मैं नहीं खोया हूं। तुम्हारा सपना तुम्हें धोखा देता होगा, मुझे धोखा नहीं दे रहा है। जब मैं तुम्हें संन्यास देता हूं तो मैं इतना ही कहता हूं कि जैसा मैं जागा हूं, वैसे तुम जाग जाओ। अभी जाग जाओ, इसी क्षण जाग जाओ! तुम चाहते हो मैं तुम्हें कुछ उपाय बताऊं कि कैसे मुक्त हों । अगर मैं तुम्हें उपाय बताऊं उसका अर्थ हुआ कि मैं भी मुक्त नहीं हूं। अगर मैं तुम्हें उपाय बताऊं तो उसका अर्थ हुआ कि मुझे भी यह स्वीकार नहीं है कि तुम मुक्त हो। में पड़े हो, जंजीरें काटनी हैं, हथौड़ियां लानी हैं, बेड़ियां खोलनी हैं, जेलखाने की दीवालें गिरानी हैं, बड़ी साधना करनी है, बड़ा अभ्यास करना है। भी मान रहा हूं कि तुम बंधन बड़ी कठिन मेहनत करनी है, • अष्टावक्र का वचन था कल कि जिसने यह जान लिया, वह फिर छोटे बच्चों की तरह अभ्यास नहीं करता है। अभ्यास नहीं करता है ! और तुमने तो सारा योग ही अभ्यास बना रखा है : अभ्यास करो, साधन का अभ्यास करो ! अष्टावक्र कहते हैं : तुम सिद्ध हो ! साधन की जरूरत उसे हो जो सिद्ध नहीं। यह तुम्हारा स्वभाव है। मैं जब कहता हूं कि मैं तुम्हें संन्यास देते ही तत्काल मुक्त कर देता हूं, तो मैं तुमसे यह कह रहा हूं कि मुक्ति की जरूरत ही नहीं है, तुम मुक्त हो । सिर्फ तुम्हें याद दिला देता हूं। एक आदमी ने शराब पी ली। वह अपने घर आया, लेकिन शराब के नशे में समझ न पाया कि अपना घर है। उसने दरवाजा खटखटाया। उसकी मां ने दरवाजा खोला। उसने अपनी मां से पूछा कि बूढ़ी मां, क्या तू मुझे बता सकती है कि मैं कौन हूं और मेरा घर कहां है? क्योंकि मैं घर भूल गया हूं, मैंने नशा कर लिया है। वह मां हंसने लगी। उसने कहा, 'पागल, किससे तू पता पूछ रहा है ? यह तेरा घर है । ' उस शराब में बेहोश आदमी ने आंखें मींड़ कर फिर से देखा और उसने कहा कि नहीं, यह घर मेरा नहीं है। मेरा आलसी शिरोमणि हो रहो 293
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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