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कर्ता-भाव को चढ़ाना होगा; वही बनेगा नैवेद्य, अर्चन। अगर उतनी हिम्मत नहीं है तो फिर हम भटकते रहते हैं, और हम पूछते भी रहते हैं। इस पूछने में एक मजा भी है। मजा यह है कि खोज तो रहे हैं, अब और क्या करें? _ 'मैं कब तक भटकता रहूंगा', पूछते हो तुम।
एक क्षण भी ज्यादा भटकने की जरूरत नहीं है। जिस क्षण तुम चाहोगे कि अब तैयार हूं समर्पण को, उसी क्षण मिलन हो जाएगा। तत्क्षण मिलन हो जाएगा। __'दिल की लगी पूरी होगी या नहीं?'
दिल की लगी...! अब पूछने जैसा है: यह दिल क्या है? किस दिल की बात कर रहे हो? कहीं यह अहंकार की धड़कन को ही तो तुम दिल नहीं कह रहे हो? अगर अहंकार की धड़कन को दिल कह रहे हो, यह 'मैं' होने को दिल कह रहे हो, तो यह लगी पूरी कभी न होगी। क्योंकि यह दिल तो मिटेगा। यह धड़कन तो बंद होगी। ____ हां, एक और गहरी बात है। अहंकार के पीछे भी छिपा तुम्हारा अस्तित्व है। उसकी लगी पूरी होगी। मगर ये दोनों साथ-साथ नहीं हो सकतीं।
आदमी की आकांक्षा यही है कि अहंकार भी तृप्त हो जाए और परमात्मा से मिलन भी हो जाए। आदमी असंभव की मांग कर रहा है। मिटना भी नहीं चाहता और मिटने से जो मजा मिलता है वह भी लेना चाहता है। खोना भी नहीं चाहता और खोने में जो अपूर्व अमृत की वर्षा होती है, उस सौभाग्य को भी पाना चाहता है। खाली भी नहीं होना चाहता, भरा रहना चाहता, और खालीपन में जो भराव आता है, उसकी भी मांग करता है। ऐसी दुविधा में आदमी है। इस दुविधा में पिसता है। दो पाटन के बीच में...। ये पाट तम्हीं चला रहे हो दोनों। फिर पिस रहे हो। साफ-साफ समझ लो।
मेरे देखे, अगर तुम्हें अहंकार में रस अभी बाकी हो तो छोड़ो परमात्मा की बकवास; अहंकार को पूरा कर लो। नास्तिक हो जाने में बुराई नहीं है। आस्तिक हो जाने में बुराई नहीं है। यह डांवाडोल चित्त-दशा बड़ी विकृत है। और अधिक लोग मुझे ऐसे ही लगते हैं : एक पांव नास्तिक की नाव पर सवार; एक पांव आस्तिक की नाव पर सवार। दोनों में से कुछ भी नहीं खोना चाहते हैं। दोनों जहान बच जायें, ऐसी चेष्टा में पिस जाते हैं। कुछ भी नहीं मिलता; कुछ हाथ नहीं लगता। तुम्हारे भीतर तुम अभी तैयार नहीं हो। तैयार नहीं हो तो साफ-साफ कह दो। ___ एक छोटे स्कूल में पादरी ने पूछा बच्चों से रविवार की धार्मिक शिक्षा दे रहा था कि जो-जो स्वर्ग जाना चाहते हैं वे हाथ ऊपर उठा दें। सब बच्चों ने उठा दिये, एक बच्चे को छोड़ कर। उसने उससे पूछा : तुमने सुना नहीं? जो स्वर्ग जाना चाहते हैं हाथ ऊपर उठा दें। तुम क्या स्वर्ग जाना नहीं चाहते? उसने कहा, जाना तो मैं चाहता हूं, लेकिन इस गिरोह के साथ नहीं। अगर यही स्वर्ग में भी जाने वाले हैं तो क्षमा। यही यहां सता रहे हैं, यही वहां सतायेंगे। इससे तो नर्क जाने को भी तैयार हूं। ___ तुम भी स्वर्ग जाना चाहते हो, लेकिन तुम्हारी शर्ते हैं। और तुम्हारी कुछ ऐसी शर्त है जो पूरी नहीं की जा सकती। तुम अहंकार को भी 'स्मगल' करना चाहते हो; उसको भी ले चलो अंदर, कहीं पोटली वगैरह में छिपा कर। क्योंकि इसके बिना मजा क्या होगा? प्राप्ति का सारा मजा अहंकार को मिलता है। और अहंकार ही–तुम कहते हो–छोड़ आओ बाहर, तो मजा कौन लेगा?
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4