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________________ रहे थे। राह में कोई भोजन देने वाला न मिला। जिन गांवों में गये, वे दूसरे संप्रदाय के गांव थे। उन्होंने इंकार कर दिया, ठहरने भी न दिया। भूखे-प्यासे तीसरे दिन एक वृक्ष के नीचे बैठे हैं। और सुबह की जब उसने नमाज पढ़ी, फकीर ने, तो उसने कहा : हे प्रभु — उसी प्रफुल्लता से कहा- धन्यभाग, हमारी जो भी जरूरत होती है, तू सदा पूरी कर देता है । फिर शिष्यों से न रहा गया। उन्होंने कहा : रुको, हर चीज की सीमा होती है। तीन दिन से भूखे मर रहे हैं; पानी तक मुश्किल से मिलता है। छप्पर मिला नहीं सोने को; धूप में मर रहे हैं; गर्मी भारी है। रात जंगल में सोना पड़ता है, जंगली जानवरों का डर है। अब किस बात का धन्यवाद दे रहे हो ? तीन दिन से भिखमंगे की तरह भटक रहे हैं और तुम्हें धन्यवाद देने की सूझी है ! और तुम कह रहे हो : जो मेरी जरूरत होती है, सदा दे देता है ! वह फकीर हंसने लगा। उसने कहा: पागलो, तीन दिन से मेरी यही ज़रूरत थी कि भूखा रहूं, पानी न मिले, छप्पर न मिले। जो मेरी जरूरत है, वह सदा पूरी कर देता है। जो वह पूरी करता है, वही मेरी जरूरत होनी चाहिए। उसमें, दोनों में, भेद ही नहीं है। अगर तीन दिन उसने भूखा रखा तो मेरी जरूरत न होती तो क्यों रखता ? कैसे रखता ? इस बात को खयाल में लो। ज्ञान की जो गहरी से गहरी दशा है, उसमें ऐसा ही रस बहता है। जो है वह ठीक; जो नहीं है वह भी बिलकुल ठीक । मिल जाये, वह भी ठीक है; न मिले, वह भी ठीक है । वह दोनों को भोग लेता है; तुम दोनों से चूक जाते हो । न मिले, उसकी तो बात छोड़ो; जो मिल गया है, उससे चूके जा रहे हो । जो थाली तुम्हारे सामने परोसी रखी है उसका भी तुम्हें स्वाद नहीं मिल रहा है। ज्ञानी उसका भी स्वाद ले लेता है जो थाली कभी परोसी ही नहीं गयी। वह हर चीज का स्वाद ले लेता है। उसे स्वाद लेने की कला आ गयी है। उसके पास कीमिया है। उसके पास एक जादू है - जादू की छड़ी है । वह हर चीज को छूता है और सोना हो जाती है; जो है वह तो हो ही जाती है; जो नहीं है वह भी सोना हो जाती है। हम तो रोते ही रहते हैं— जो पीछे छोड़ आये उसके लिए...। तुमने देखा, किसी आदमी ने बीस साल पहले तुम्हें गाली दी थी, वह अभी भी खटकती है। किसी ने अपमान कर दिया था, वह अब भी भारी है। कोई नाराज हो गया था, वह चेहरा भूलता नहीं, आंख से हटता नहीं। किसी से बदला लेना चाहा था, अभी भी मवाद मौजूद है, घाव हरा है। बरसों बीत गये; पीछे लौट लौट कर तुम फिर ताजा कर लेते हो । जो नहीं है अब, अतीत तो जा चुका, उसका भी कष्ट भोग रहे हो। हो सकता है दुश्मन मर चुका हो, फिर भी तुम पीड़ा झेल रहे हो। और भविष्य, जिसका तुम्हारे हाथ में कोई उपाय नहीं है, उसके हजार गणित बिठा रहे हो, उनमें बेचैन हो । और जो मिला है अभी वर्तमान के क्षण में, वह चूका जाता है। छोड़ आये थे जिसे हम खेत में पक गयी होगी सुनहली धान महकती होगी हवा घर-गांव की हर देह और हंसियों को छुआ होगा कुंआरी उंगलियों का नेह तोड़ आये थे जहां हम बांसुरी धर्म अर्थात सन्नाटे की साधना 217
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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