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ज्ञानी के समर्पण का अर्थ है: तथाता। जैसा है उसके साथ राजी हो जाओ। भक्त के समर्पण का अर्थ है: अपने को मिटा दो। जो है उसमें लीन हो जाओ। अंतिम घड़ी में दोनों मिल जाते हैं। भेदभाषा का है। भक्त की भाषा रसपूर्ण है।
आ मेरी आंखों की पुतली आ मेरे जी की धड़कन आ मेरे वृंदावन के धन आ ब्रज - जीवन मनमोहन
आ मेरे धन, धन के बंधन आ मेरे जन, जन की आह
आ मेरे तन तन के पोषण
आ मेरे मन, मन की चाह !
भक्त प्रेम की भाषा बोलता है; प्रार्थनापूर्ण भाषा बोलता है।
हृदय,
भक्त का अर्थ है : स्त्रैण हृदय । साक्षी का अर्थ है : पुरुष हृदय । और जब मैं कहता हूं स्त्रैण तो तुम यह मत समझना कि स्त्रैण हृदय सिर्फ स्त्रियों के पास होता है। बहुत पुरुषों के पास स्त्रैण हृदय है । और जब कहता हूं पुरुष हृदय, तो तुम ऐसा मत सोचना कि सिर्फ पुरुषों के पास होता है। बहुत स्त्रियों के पास पुरुष का हृदय होता है। पुरुष हृदय और स्त्रैण हृदय का संबंध शरीर से नहीं के बराबर है।
मैं कल एक चित्र देखता था। चीन में एक प्रतिमा पूजी जाती है : क्वानइन । क्वानइन बुद्ध की ही एक प्रतिमा है - लेकिन बड़ी अनूठी प्रतिमा है ! प्रतिमा स्त्री की है। तो मैंने खोजबीन की कि मामला क्या हुआ? यह बुद्ध की प्रतिमा स्त्री की कैसे हो गयी ? जब पहली दफा बुद्ध की खबर चीन में पहुंची तो चीन के मूर्तिकारों को वहां के सम्राट ने कहा कि प्रतिमा बनाओ बुद्ध की। तो उन्होंने बुद्ध का जीवन जानना चाहा, उनका आचरण जानना चाहा, उनके गुण जानना चाहे— क्योंकि प्रतिमा कैसे बनेगी ? जब उन्होंने सारे गुण और सारे आचरण की खोजबीन कर ली, तो उन्होंने कहा: यह आदमी पुरुष तो हो ही नहीं सकता! भला पुरुष शरीर में रहा हो, लेकिन यह आदमी पुरुष नहीं हो सकता। इसमें ऐसी करुणा है, ऐसी ममता है, ऐसा प्रेम है - स्त्री ही होगा। तो उन्होंने जो प्रतिमा बनायी वह क्वानइन के नाम से अब भी बनी है, मौजूद है। बड़ी गहरी सूचना है। हमने भी जो प्रतिमा बुद्ध की बनायी है, अगर गौर से देखो तो चेहरे पर स्त्रैण भाव ज्यादा है, पुरुष भाव कम है। कुछ कारण होगा। गुणों की बात है। शरीर का उतना सवाल नहीं है, जितना भीतरी गुणों की बात I
तो खयाल रखना, जब मैं कहता हूं स्त्रैण, तो स्त्री से मेरा मतलब नहीं है । और पुरुष तो पुरुष से मेरा मतलब नहीं है। पुरुष चित्त से मेरा अर्थ है, जो समर्पण करने में असमर्थ है। स्त्री से मेरा अर्थ है जो समर्पण के बिना जी ही नहीं सकती। स्त्री तो ऐसे ही है जैसे लता - वृक्ष पर छा जाती है; पूरे वृक्ष को घेर लेती है - लेकिन वृक्ष के सहारे ।
तुमने किसी वृक्ष को लता के सहारे देखा ? कोई वृक्ष लता के सहारे नहीं होता । लता वृक्ष के सहारे होती है। वृक्ष धन्यभागी हो जाता है, लता उसे घेर लेती है तो — प्रफुल्लित होता है, आनंदित
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अष्टावक्र: महागीता भाग-4