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कैसी है पहचान तुम्हारी राह भूलने पर मिलते हो ! कैसी है पहचान तुम्हारी राह भूलने पर मिलते हो ! पथरा चलीं पुतलियां, मैंने विविध धुनों में कितना गाया! दायें बायें ऊपर नीचे दूर- पास तुमको कब पाया ! धन्य कुसुम पाषाणों पर ही तुम खिलते हो तो खिलते हो कैसी है पहचान तुम्हारी राह भूलने पर मिलते हो !
रस तुम्हारी राह है। और रस का अर्थ होता है : डूबना । रस का अर्थ होता है : भूलना। रस का अर्थ होता है : ऐसे लवलीन हो जाना, ऐसे तल्लीन हो जाना कि मिट ही जाओ।
रस यानी शराबी का मार्ग। और जिसने रस को जान लिया उसके लिए सारा जगत मधुशाला हो जाता है। और तब तुम एक दिन पाओगे कि परमात्मा ही साकी बन कर ढाल रहा है; वही तुम्हें पिला रहा है। वही है पिलाने वाला। वही है पीने वाला। उसी की है प्याली, उसी रस से भरी है। उसी का रस है सुराही में । वही ढाल रहा है। सब कुछ उसी का है।
रस तुम्हारा मार्ग है। अब और मार्ग खोजने की कोई जरूरत नहीं। बस इतना ही स्मरण रखना : जहां भूल जाओगे वहीं उससे मिलन होने लगेगा।
रच सकते हैं अच्युत ही महा रास
बंधी हुई है उनके ही स्थिर से गोपिकाओं की च्युति
गूंजता है रागिनियों के वैविध्य में उनका ही ओंकार
व्यक्त है उनकी ही लीला में अव्यक्त ऋतंभरा ।
यह जो सारां रसमुग्ध संसार है - यह जो कहीं रस हरा हो कर वृक्षों में बह रहा, कहीं चांद-तारों में ज्योति बन कर झर रहा; यह जो रस से भरा संसार है— कहीं मोर नाच रहा, कहीं बादल घुमड़ आये; यह जो रस से भरा संसार है - पानी के झरनों में, पत्थरों-चट्टानों में या आंखों में – एक ही सब तरफ से सब रूपों में प्रगट हो रहा है ! यह जो रास चल रहा है, यह जो लीला है, यह जो खेल है, इसमें तुम तल्लीन होना सीख गये, इसमें डुबकी लगाने लगे, इसमें ऐसे मंत्रमुग्ध होने लगे कि तुम बचे ही नहीं पीछे, मंत्रमुग्धता ही रही, तल्लीनता ही रही, तुम न रहे; नाच तो बचा, नाचने वाला न बचा- तो रस उपलब्ध होगा । गीत तो बचा, गानेवाला न बचा... !
यहां मैं बोल रहा हूं; अगर बोलने वाला भी पीछे है तो इस बोलने में कुछ बहुत सार नहीं है । यहां तुम सुन रहे हो; अगर सुनने वाला भी मौजूद है तो सुनने में कुछ रस नहीं । इधर बोलने वाला नहीं है, उधर सुनने वाला न हो-तब दोनों की एक गांठ बन जाती है; दोनों बंध जाते हैं, भांवर पड़
रमो वै स
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