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________________ हंसने लगा। उसने कहा : 'तो तुमने कमाया क्या, एक गिलास पानी ! मौका पड़ जाये तो एक गिलास पानी खरीद लेना। यह साम्राज्य, इसका कुल मूल्य कितना है ? गला जरा अतृप्त होगा तो उसको भी तृप्त न कर पायेगा, तो आत्मा को तो तृप्त कैसे करेगा ? गले की प्यास भी न बुझ पायेगी इससे, तो हृदय की प्यास तो कैसे बुझेगी ! देह की क्षुधा भी न मिटेगी तो आत्मा की क्षुधा तो कैसे मिटेगी ! उस फकीर ने कहा: 'बहुत हो गया पागलपन ! अब उतर नीचे सपने से ! जाग !' एक ही प्रश्न महत्वपूर्ण है — और वह पूछना है कि मैं कौन हूं। और ऐसा मत सोचना कि तुम पूछते रहोगे मैं कौन हूं, मैं कौन हूं, उत्तर आ जायेगा; जैसे कि परीक्षा की कापियों में उत्तर आते हैं! नहीं, जब तुम पूछते ही रहोगे, पूछते ही रहोगे, उत्तर तो नहीं आयेगा, एक दिन प्रश्न भी रुक जायेगा । अनुभूति आयेगी, उत्तर नहीं । अनुभव आयेगा ! जीवन और चैतन्य, तुम्हारे भीतर जो मिल रहे हैं, जो महामिलन हो रहा; जीवन और चैतन्य हाथ में हाथ डाल कर जो नाच कर रहे हैं, जो नृत्य चल रहा है— उसकी प्रतीति आयेगी, उसका साक्षात्कार होगा । उसी साक्षात्कार में तृप्ति है। तेन ज्ञानफलं प्राप्तं योगाभ्यासफलं तथा । जानना कि उन्होंने ही पा लिया ज्ञान का फल और जानना कि उन्होंने ही पा लिया योग का फल... । तृप्तः स्वच्छेन्द्रियो । जो तृप्त हो गये और जिनकी इंद्रियां स्वच्छ हो गईं। • यह भी समझने जैसा है। स्वच्छेन्द्रिय ! फर्क को खयाल में लेना । अक्सर तुम्हारे धर्मगुरु तुम्हें समझाते हैं: ‘इंद्रियों की दुश्मनी । तोड़ो, फोड़ो, इंद्रियों को दबाओ, मिटाओ ! किसी भांति इंद्रियों से मुक्त हो जाओ!' अष्टावक्र का वचन सुनते हो : स्वेच्छन्द्रियः । इंद्रियां स्वच्छ हो जायें, और भी संवेदनशील हो जायेंगी । ज्ञान का फल ! यह वचन अदभुत है। नहीं, अष्टावक्र का कोई मुकाबला मनुष्य जाति के इतिहास में नहीं हैं। अगर तुम इन सूत्रों को समझ लो तो फिर कुछ समझने को शेष नहीं रह जाता है। इन एक-एक सूत्र में एक-एक वेद समाया है। वेद खो जायें, कुछ न खोयेगा; अष्टावक्र की गीता खो ये तो बहुत कुछ खो जायेगा । स्वच्छेन्द्रिय ! ज्ञान का फल है : जिसकी इंद्रियां स्वच्छ हो गईं; जिसकी आंखें साफ हैं ! तुमने सुना, सूरदास की कथा है! मैं मानता नहीं कि सच होगी। मानता इसलिए नहीं कि सूरदास से मेरा थोड़ा लगाव है। कि एक स्त्री को देखकर उन्होंने आंखें फोड़ लीं - इस भय से कि आंखें गलत रास्ते पर ले जाती हैं। अगर सूरदास ने ऐसा किया हो तो दो कौड़ी के हो गये। हां, जिन्होंने कहानी गढ़ी है, उनकी बुद्धि ऐसी ही रही होगी। आंखें फोड़ लोगे, इससे स्त्री के रूप से छुटकारा हो जायेगा ? रात सपने में तो आंख बंद होती है तो क्या स्त्री के रूप से छुटकारा हो जाता है ? स्त्री तो और रूपवान हो कर प्रगट होती है। सपने में जैसी सुंदर होती हैं स्त्रियां वैसी कहीं जाग कर तुमने पाईं ? यही तो जिंदगी की तकलीफ है कि सपने में मिल जाती हैं और जिंदगी में नहीं मिलतीं। और जिंदगी में जो भी मिलती है वह सपने की स्त्री से छोटी पड़ती है, इसलिए तृप्त नहीं कर पाती । या पुरुष जीवन में जो मिलता है, वह सपने के पुरुष से छोटा पड़ता है। सपने हमारे बड़े और यथार्थ बड़ा छोटा है। यथार्थ सहज ज्ञान का फल है तृप्ति 91
SR No.032112
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1990
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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