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________________ का चित्र है, मुझसे क्या लेना देना? यह तो मैं अपनी समाधि को नमस्कार कर रहा हूं और समाधि मेरी-तेरी थोड़े ही होती है, अपनी-तुम्हारी थोड़े ही होती है। समाधि तो समाधि है। समाधि को तो नमन करना होता है।' तो जब सिद्ध उतरता है वापस जगत में और खबर देता है, तब ऐसे भाव पैदा होते हैं। ये भाव समाधि में पैदा नहीं होते, लेकिन समाधि को बांटना पड़ता है। समाधि अगर बंटे न तो समाधि नहीं। महावीर बारह वर्ष तक मौन में रहे; फिर जिस दिन घटी घटना, भागे नगर की तरफ! जो छोड़ आए थे, वहीं भागे। भागे भीड़ की तरफ! जिससे पीठ मोड़ ली थी, उसी तरफ गए। जहां से विमुख हो गए थे, फिर वहां लौटे। अब घटना घट गयी थी, अब बांटना था। फूल खिल गए थे, अब सुगंध फैलनी थी। सोचता था मैंने जो नहीं कहा वह मेरा अपना रहा, रहस्य रहा अपनी इस निधि, अपने संयम पर मैंने बार-बार अभिमान किया पर हार की तक्षण धार है साल रही मेरा रहस्य उतना ही रक्षित है उतना भर मेरा रहा जितना किसी अरक्षित क्षण में तुमने मुझसे कहला लिया जो औचक कहा गया, वह बचा रहा जो जतन संजोया, चला गया। यह क्या, मैं तुमसे या जीवन से या अपने से छला गया! जो औचक कहा गया, वह बचा रहा जो जतन संजोया, चला गया! इस जीवन में जो तुम बचाओगे वह खो जाएगा। जो तुम बांट दोगे, वह बच जाएगा। ऐसा अनूठा नियम है। जो दोगे, वही तुम्हारा रहेगा। जो सम्हाल कर रख लोगे, छिपा लोगे-सड़ जाएगा, कभी तुम्हारा न रहेगा। इसलिए समाधि तो परम ध्यान है। जब फलता है तो बांटना पड़ता है। समाधि वही जो बंटे, न बंटे तो झूठ कहीं कुछ भूल हो गई कहीं कुछ नासमझी हो गई, कहीं कुछ का कुछ समझ बैठे। जब बादल जल से भरा हो तो बरसेगा, तो तृप्त कंठ पृथ्वी का होगा उसकी वर्षा से। जब दीया जलेगा
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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