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________________ 'आप कहते थे कि मैं आपके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें। अब आप वैसा नहीं कहते।' न तो तब वैसा मैंने तम्हारी मान कर कहा था और न अब तुम्हारी मान कर कहूंगा तब मैंने अपनी मौज से कहा था, अब अपनी मौज से बंद कर दिया। तुम मेरे मालिक नहीं हो। इस तरह के प्रश्नों में कहीं भीतर छिपी एक आकांक्षा होती है जैसे तुम मेरे मालिक हो। मैं वही कहता हूं जो मैं कहना चाहता हूं, तुम्हारी रत्ती भर चिंता नहीं है। तुम हो कौन? तुम्हें प्रीतिकर लगे, मेरा गीत सुन लेना, तुम्हें प्रीतिकर न लगे, तुम्हारे पास पैर हैं, तुम अपनी राह पकड़ लेना। ____ मैं तुम्हारी आकांक्षाएं, अभीप्साएं तृप्त करने के लिए यहां नहीं हूं-मैं तुम्हारा गुलाम नहीं हां साधारणत: तुम जिनको महात्मा कहते हो, वे तुम्हारे गुलाम होते हैं। वही तो अड़चन है मेरे साथ। तुम जैसा कहलवाते हो, कहते हैं। तुम जैसा चलवाते हो, चलते हैं। तुम जैसा बताते हो, बस......:| ऊपर से दिखता है कि तुम महात्मा के पीछे चल रहे हो; गौर करो तो महात्मा तुम्हारे पीछे चल रहा है। इनको तुम महात्मा कहते हो जो तुम्हारे पीछे चलते हैं? किस धोखे में पड़े हो? जो तुम्हारे पीछे चलता है, वह तो इसी कारण अयोग्य हो गया, उसके पीछे तो चलना ही मत। लेकिन तुम्हारा परिचय इसी तरह के महात्माओं से है, इसी तरह के नेताओं से है। मैं न तो कोई महात्मा न कोई नेता हूं। नेता हमेशा अपने अनुयायी का अनुयायी होता है। इसलिए कुशल नेता वही है जो देख लेता है कि अनुयायी किस तरफ जाते हैं, उसी तरफ चलने लगता है। कुशल राजनीतिज्ञ वही है जो पहचान लेता है हवा का रुख और देख लेता है कि अब अनुयायी पूरब की तरफ जा रहे हैं तो वह पहले से ही पूरब की तरफ चलने लगता है। अनुयायी कहते हैं समाजवाद, वह और जोर से चिल्लाता है समाजवाद; अनुयायी अगर समाजवाद के विरोध में हैं तो वह विरोध में हो जाता है। या वह इस ढंग के वक्तव्य देता है कि उन वक्तव्यों में तुम साफ नहीं कर सकते कि वह पक्ष में है कि विपक्ष में, ताकि उसे सुविधा बनी रहती कि वह कभी भी उन वक्तव्यों को बदल ले। __ मैंने सुना है, पटवारी ने रिश्वत ली। पकड़ा गया। मुकदमा चला। पटवारी के विरुद्ध गांव में तीन व्यक्ति साक्षी देने आए, जिनमें ताऊ शिवधन भी थे। पहला गवाह पेश हुआ| पटवारी के वकील ने एक ही प्रश्न पूछा: 'पटवारी ने जब पचास रुपए लिए, उस समय वह बैठा था या खड़ा था?' पहला गवाह बोला : बैठा था।' अब दूसरा गवाह पेश हुआ| वकील ने वही प्रश्न उससे भी पूछा। उसने कह दिया : 'खड़ा था।' अब बारी आयी ताऊ शिवधन की। वे भांप गये कि मामला गड़बड़ है। वकील ने उनसे भी वही प्रश्न किया तो ताऊ बोले: बस बाबूजी, कै बूझोगे?' 'मेरे सवाल का सीधा जवाब दो। बूझोगे कि नहीं बूझोगे यह बात मत करो। यह क्या उत्तर हुआ कि बस बाबूजी कै बूझोगे। मेरे सवाल का सीधा जवाब दो,' वकील ने धमकी दी। ताऊ हंस कर बोले :' अरे वकील साहिब, पटवारी ने तो कमाल कर दिया! पचास रुपये जेब में पड़ गये ते माचा-माचा फिरै। कदै उठे, कदै बैठे! कदै कुरसी पै बैठे, कदै मढ़े पै और कदै खड़ा होवै।'
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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