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________________ था। तो औषधि दे कर हम बुखार से भरे आदमी का सन्निपात नीचे उतारते हैं। जब सन्निपात नीचे उतर जाता है, तब उसे ध्यान की विधि देंगे। जब ध्यान की विधि उसके चित्त को शांत कर देगी, तो साक्षी सुगम हो जाएगा। अंतिम घटना तो साक्षी की ही है। अंतिम समय में तो अष्टावक्र ही सही हैं। लेकिन तुम एकदम उस अंतिम घड़ी को पहुंच पाओगे रूम पहुंच जाओ तो शुभ न पहुंच पाओ तो ध्यान करना ही होगा। पूछा है. एक ओर साधकों को ध्यान-पद्धति के लिए कहते हैं और दूसरी ओर सब ध्यानपद्धतियां गोरखधंधा हैं, ऐसा कहते हैं। इससे साधक विधा में फंस जाता है। वह कैसे निर्णय करे कि उसके लिए क्या उचित है?' जब तक द्विधा रहे तब तक ध्यान उचित है। जब दुविधा मिट जाए और समझ, प्रज्ञा का प्रकाश फैले और एक क्षण में घटना घट जाए, फिर तुम पूछोगे ही नहीं। फिर बात ही नहीं उठती पूछने की। घटना ही घट गयी, तुम समाधि को उपलब्ध ही हो गए, तो फिर तुम पूछने थोड़े ही आओगे कि अब ध्यान करूं कि न करूं? जब तक पूछने आते हो तब तक तो ध्यान करना। अभी तुम जहां खड़े हो, वहां से छलांग तुम न लगा सकोगे। शायद ध्यान कर-करके मन थोड़ा शांत हो, सन्निपात थोड़ा कम हो, तो फिर छलांग लग सके। छलांग तो लगानी ही होगी कर्ता से साक्षी पर, इतना निश्चित है। आत्यंतिक अर्थों में अष्टावक्र का वक्तव्य पूर्ण सत्य है; लेकिन तुम जिस जगह खड़े हो, वहा सत्य है या नहीं, यह कहना कठिन है। छोटे बच्चे को स्कूल भेजते हैं तो सिखाते हैं 'ग' गणेश का या 'ग' गधे का। 'ग' से न तो गधे का कोई संबंध है न गणेश का कोई संबंध है। और अगर बच्चा बहुत सीख ले कि 'ग' गधे का,'ग' गधे का-फिर जब भी 'ग' को पढ़े, तब यह मन में उसको दोहराए कि 'ग' गधे का, तो वह कभी पढ़ नहीं पाएगा। वह गधा बीच-बीच में आएगा। वह तो सिर्फ सहारा था, बच्चे को समझाने का उपाय था। बच्चा गधे को जानता है,'ग' को नहीं जानता। गधा देखा है। इसलिए बच्चों की किताब में बड़े-बड़े चित्र बनाने पड़ते हैं, क्योंकि चित्र बच्चा पहचान लेता है। बड़ा आम लटका है, वह पहचान लेता है। गधा खड़ा है, वह पहचान लेता है। गधे को पहचानने से 'ग' को पहचानने में सुविधा बन जाती है। लेकिन एक दिन फिर भूल जाएगा 'ग' गधे का। 'ग' अपना;'ग' क्यों गधे का हो, क्यों गणेश का हो! ध्यान तो उनके लिए है जिनके लिए अभी वह आत्यंतिक बात समझ में न आ सकेगी। यह प्राथमिक है। अभी तो ध्यान भी समझ में आ जाए तो बहु ता अभी तो बहुत ऐसे हैं जिन्हें ध्यान भी समझ में नहीं आ सकेगा। अभी उनको प्राइमरी स्कूल में भी भरती करना उचित नहीं है, अभी तो किंडरगार्डन में कहीं डालना पड़े। अभी तो ध्यान भी समझ में नहीं आएगा। जिसको ध्यान समझ में न आए उसे हम कहते हैं: पढ़ो, स्वाध्याय करो, मनन करो। जिसको मनन होने लगे, स्वाध्याय होने लगे, उसे कहते हैं : ध्यान करो। जिसको ध्यान आ जाए, फिर उसको कहते हैं कि अब छलांग लगा
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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