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________________ न रखो, पक्ष-विपक्ष न रखो। राग तो छोड़ो ही, विराग भी छोड़ो, क्योंकि तुमसे इसका कुछ लेना देना नहीं। तुम नहीं थे, तब भी जीवन बहुत था तब भी फूल खिलते थे, कोयल कुहु कती थी तब भी संसार में विचार की तरंगें भरी थीं, तब भी सागर की छाती पर लहरें उठतीं, तूफान, आंधिया आते थे। तुम एक दिन नहीं रहोगे, तब भी सब ऐसे ही चलता रहेगा। तुम तट पर बैठ जाओ, तटस्थ हो जाओ। तटस्थ होना साधन है। अगर तुम तट पर बैठ गए, और नदी की धार को बहने दिया और तुमने कोई भी पक्षपात न रखा; तुमने कोई निर्णय भी न रखा मन में कि यह नदी अच्छी है या बुरी......: तुम्हारा लेना-देना क्या? जिसकी हो, वह जाने। यह जीवन कैसा है-शुभ है कि अशुभ, पाप कि पुण्यऐसा तुमने कुछ भी विचार न किया। तुम्हारा लेना-देना क्या? आए तुम अभी, कल तुम चले जाओगे, घड़ी भर का बसेरा है। रात रुक गए हो सराय में, अब सराय अच्छी कि बुरी, तुम्हें क्या प्रयोजन है? सुबह डेरा उठा लोगे, जिसकी हो सराय वह फिक्र करे। तुम अगर तट पर ऐसे बैठ गए, तटस्थ हो गए तो जल्दी ही एक दूसरी घटना घटेगी, तुम कूटस्थ हो जाओगे। कूटस्थ का ही अर्थ है: आस्थित:! यह शब्द समझना, क्योंकि जनक इसे बार-बार दोहराएंगे।'मैं अपने में स्थित हो गया हूं! अब मेरे भीतर कोई हलन-चलन नहीं! अब बाहर चलता रहे तूफान, मेरे भीतर कोई तरंग नहीं आती।' तरंग आती थी तभी तक, जब तक तुम बाहर से संबंध जोड़े बैठे थे-सहयोग या असहयोग, मित्र या शत्रु, राग या विराग-कोई नाता तुमने बना लिया था। सब नाते छोड़ दिए......:। तीन शब्द हैं हमारे पास : राग, विराग, वीतराग। ये सूत्र वीतरागता के हैं। रागी एक तरह का संबंध बनाता है; विरागी भी संबंध बनाता है दूसरे तरह के। किसी व्यक्ति से तुम्हें प्रेम है तो तुम्हारा एक संबंध होता है। फिर किसी व्यक्ति से तुम्हारी घृणा है तो भी तुम्हारा एक तरह का संबंध होता है। मित्र से ही थोड़े संबंध होता है, शत्रु से भी संबंध ता है। किसी से आकर्षण से बंधे हो, किसी से विकर्षण से बंधे हो-बंधे तो निश्चित ही हो। तुम्हारा मित्र मर जाए, तो भी कुछ खोला, तुम्हारा शत्रु मर जाए तो भी कुछ खोएगा। तुम्हारे शत्रु के बिना भी तुम अकेले और अधूरे हो जाओगे। कहते हैं, महात्मा गांधी के मर जाने के बाद मुहम्मद अली जिन्ना उदास रहे। जिस दिन महात्मा गांधी की मौत हुई जिन्ना अपने बाहर बगीचे में लान पर बैठा था। और तब तक जिन्ना ने जिद की थी, यदयपि वे गवर्नर जनरल थे पाकिस्तान के, तब तक जिद की थी कि मेरे पास कोई सुरक्षा का इंतजाम नहीं होना चाहिए।'मुसलमानों का देश, उनके लिए मैं जीया, उनके लिए मैंने सब क्रिया-उनमें से कोई मुझे मारना चाहेगा, यह बात ही फिजल है।' इसलिए तब तक बहुत आग्रह किए जाने पर भी उन्होंने कोई सुरक्षा की व्यवस्था नहीं की थी। लेकिन जैसे ही उनके सेक्रेटरी ने आ कर खबर दी कि गांधी को गोली मार दी गई, जिन्ना एकदम उठ कर बगीचे से भीतर चला गया। और दूसरी बात जो जिन्ना ने कही अपने सेक्रेटरी को, कि सुरक्षा का इंतजाम कर लो। जब हिंदू गांधी को मार सकते हैं, तो अब कुछ भरोसा नहीं। अब किसी का भरोसा नहीं किया जा सकता। तो मुसलमान
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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