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________________ यह भी अजीब मंत्र है; मगर मालूम होता है शक्तिशाली है, क्योंकि बाधा तो दिखाई पड़ने लगी है। रात भर बैठा, बहुत बार बैठा फिर-फिर बैठा, उठ-उठ आए क्योंकि पांच दफे कहना है कुल; एकआध दफे ऐसा लग जाए योग कि पांच दफे कह ले और बंदर न दिखाई पड़े, मगर यह न हो सका। हर मंत्र के शब्द के बीच बंदर खड़ा। सुबह थका-मादा आया, गुरु को कहा यह मंत्र सम्हालो! न तुमसे सधा, न मुझसे सधेगा, न यह किसी से सध सकता है। क्योंकि यह बंदर इसमें बड़ी बाधा है। अगर यही शर्त थी तो महापुरुष! कही क्यों? कहते भर नहीं। दुनिया का कोई जानवर नहीं याद आया रात भर। साधारणत: मन में वासना उठती है, स्त्रियां दिखाई पड़ती हैं मगर इस रात स्त्री भी नहीं दिखाई पड़ी-बस, यह बंदर ही बंदर। कहते न, तो शायद मंत्र सध जाता। गुरु ने कहा : मैं भी क्या करूं? वह शर्त तो बतानी जरूरी है। तुम मन के साथ प्रयोग करके देखो। जिसे तुम भुलाना चाहोगे, उसकी और याद आ जाएगी। जिसे तुम हटाना चाहोगे, वह और जिद बांध कर खड़ा हो जाएगा। फिर भी तुम्हें खयाल नहीं आता कि मन के चलाने वाले तुम नहीं हो। चलाने की चेष्टा ही भ्रांत है। 'तो पहले मैंने शरीर को देखा और समझा-पाया कि मैं इसका न सहारने वाला हूं।' पूर्व कायकृत्यासह..................| पहले मैंने यह जाना कि मेरा सहयोग आवश्यक नहीं है। मैं नाहक सहयोग कर रहा हूं। कोई जरूरत ही नहीं शरीर को मेरे सहयोग की। पहले मैं सहयोग करता हूं और फिर जब परेशान होता हूं तो असहयोग करता हो लेकिन दोनों में भ्रांति एक ही है। मुझसे कुछ लेना देना नहीं है न सहयोग, न असहयोग। मैं सिर्फ साक्षी हो जाऊं। तत वाग्विस्तरासहः। और तब जाना कि यह जो वाणी का विस्तार है, शब्द का विस्तार है, ये जो शब्द की तरंगें है-इन पर भी मेरा कोई वश नहीं है। मैं इनके भी पार हूं। अद्य चितासह.................. और तब जाना कि चिंतन-मनन, ये भी मेरे नहीं हैं। मैं इनसे भी पार हूं। तस्मात् एवं अहं आस्थित:। और तब से मैं अपने में स्थित हो गया हूं। स्वयं में स्थित होने के लिए कुछ और करना नहीं इतना ही जानना पर्याप्त है कि कर्ता मैं नहीं हूं कर्तापन खो जाए। नदी रुकती नहीं है लाख चाहे उसे बांधो, ओढ़ कर शैवाल वह चलती रहेगी।
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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