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________________ रो रहा विरही अकेला देख तन का मिलन मेला पर जगत में दो हृदय की मिलन-आशा विफल है। हर जगह जीवन विकल है। अनुभवी इसको बताएं व्यर्थ मत मुझसे छिपाएं प्रेयसी के अद्यर-मधु में भी मिला कितना गरल है। हर जगह जीवन विकल है। मनुष्य को गौर से देखें तो मरुस्थल ही मरुस्थल मिलेगा। जीवन में किसी के भीतर झांकें तो प्यास ही प्यास, अतृप्ति ही अतृप्ति मिलेगी। ऊपर से देख कर मनुष्य को, धोखे में मत पड़ जाना। ऊपर तो हंसी है, मुस्कुराहट है, फूल सजा लिए हैं-भीतर जीवन बहुत विकल है। वस्तुत: भीतर विकलता है, इसीलिए बाहर फूल सजा लिए हैं; भीतर आंसू हैं,? इसलिए बाहर मुस्कुराहटों का आयोजन कर लिया है। फ्रेडरिक नीत्शे ने कहा है : मैं हंसता ह लोग सोचते हैं मैं खुश हां मैं हंसता हूं इसलिए कि कहीं रोने न लग। अगर न हंसा तो रोने लगता। हंस-हंस कर छिपा लेता हूं आते हुएआंसुओ को। हम बाहर तो कुछ और दिखाते हैं, भीतर हम कुछ और हैं। इसलिए बड़ा धोखा पैदा होता है। काश, हर व्यक्ति अपने जीवन की कथा को खोल कर रख दे, तो तुम बहुत हैरान हो जाओगे : इतना दुख है, दुख ही दुख है; सुख की तो बस आशा है! आशा है कि मिलेगा कभी! आशा है-आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों; इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में, पृथ्वी पर नहीं तो स्वर्ग में बस, आशा है! हाथ में तो राख है। प्राणों में तो बझापन है। इस सत्य से जो जागा, उसके जीवन में ही क्रांति घटित होती है। होता ऐसा है कि हम दूसरे को धोखा देते -देते अपने को भी धोखा दे लेते हैं। हंसते हैं ताकि दूसरे को पता न चले आंसुओ का। दूसरा हमें हंसते देखता है, भरोसा कर लेता है कि हम प्रसन्न हैं; उसके भरोसे पर धीरे- धीरे हम भरोसा कर लेते हैं कि हम जरूर प्रसन्न होंगे, तभी तो लोग भरोसा करते हैं। ऐसा धोखा बड़ा गहरा है। जिस आदमी ने अमरीका में पहला बैंक खोला, उससे किसी ने पूछा जब वह बड़ा सफल हो गया, कि तुमने बैंक खोला कैसे?
SR No.032111
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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